देहरादून मेयर गामा का “परिवार कल्याण मिशन” !

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पत्नी और बेटी को एडजस्ट करने के बाद दरबार साहिब से सस्ती दरों पर ली जमीन

देहरादून। ’सुनील उनियाल गामा बहुत सीधे व्यक्ति हैं। वे अन्य नेताओं की भ्रष्ट नहीं हैं। उनकी छवि साफ-सुथरी है।’ जो लोग देहरादून के मेयर सुनील उनियाल गामा के विषय में आज तक यह कहते थे, वे इन दिनों दांतों तले उंगलियां दबा रहे होंगे। हाल ही कुछ दिनों में जिन कारणों से गामा जी चर्चा में आए हैं, उन्हें देखकर लगता है कि ये लोग गामा जी की छवि के विषय में शायद गलतफहमी में थे। पत्नी को विधानसभा में ’एडजस्ट’ करवाने और इसके बाद बेटी को आउटसोर्स के माध्यम से नौकरी दिलवाने के बाद बेटे के लिए औने-पौने दामों पर जमीन लेकर बिजनेस व्यवस्था करने के उनके कारनामों को देखकर तो यही लगता है कि वे परिवार कल्याण के लिए ही सत्ता में आए हैं।
बताते हैं कि सियायत में आने से पहले सुनील उनियाल गामा का छोटा-मोटा बिजनेस था। वे देहरादून शहर में चाउमिन और पान बेचा करते थे। 1991 में उन्होंने सियासत (भाजपा) में कदम रखा धीरे-धीरे पार्टी में पैठ बनाते गए। उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खास लोगों में शुमार गामा 2018 में कांग्रेस के दिनेश अग्रवाल को हराकर देहरादून के मेयर का चुनाव जीते थे। इससे पहले भाजपा के ही विनोद चमोली यहां के मेयर थे।
सुनील उनियाल के बारे में लोगों यह धारणा रही है कि बहुत ही सीधे इंसान हैं, लेकिन कुछ दिन पहले वे चर्चा में अचानक चर्चा में आ गए। यह चर्चा विकास कार्य को लेकर नहीं, बल्कि इसलिए रही कि उन्होंने अपनी लड़की को आउटसोर्स के माध्यम से बैकडोर इंट्री से अकाउंटेंट की नौकरी पर लगवा दिया। सोशल साइट से लेकर अनेक मंचों पर इसकी तीखी आलोचना हुई। बताया जाता है कि उनकी पत्नी भी काफी साल पहले इसी प्रकार विधानसभा में विशेष कृपा से ’एडजस्ट’ करवाई गई थीं।
इन दिनों मेयर का नाम फिर उछल पड़ा है। पता चला कि उन्होंने अपने बेटे शाश्वत उनियाल के नाम पर श्री गुरुरामराय दरबार साहिब के महंत देवेंद्र दास से औने-पौने दामों पर 29 साल के लिए बेशकीमती जमीन लीज पर ले ली। देहरादून शहर के बीचोंबीच स्थित इस जमीन पर उन्होंने कमर्शियल नक्शा भी पास करवाया है।
इस मामले में सवाल केवल मेयर पर ही नहीं, महंत देवेंद्रदास पर भी उठ रहे हैं कि अपनी जमीनों की सुरक्षा के प्रति खासे चिंतित रहने वाले महंत जी आखिर मेयर पर इतनी कृपा क्यों उड़ेल गए? कहीं ऐसा तो नहीं कि मेयर ने भी दरबार साहिब की तरफ कोई कृपा दृष्टि डाल दी हो? या फिर श्री दरबार साहिब भविष्य में नगरनिगम से कुछ मदद लेना चाहता है? मामला ’गिव एंड टेक’ का भी लग रहा है।
खास बात यह है कि इतनी बड़ी खबर राज्य के किसी बड़े अखबार और टीवी चैनल की सुर्खी नहीं बन पायी। इसलिए सवाल अधिक उठने लगे। यह भी कयास लगाया जा रहा है कि श्री दरबार साहब का मीडिया मैनेजमेंट तगड़ा होने के कारण यह खबर मीडिया में नहीं आ पायी, क्योंकि श्री दरबार साहिब विज्ञापनों का भी बड़ा स्रोत है। दूसरी बात यह है कि महंत देवेंद्र दास गुपचुप राजनीतिक पहुंच वाले भी बताए जाते हैं। अनेक नेता उनके दरबार में हाजिरी लगाने जाते रहे हैं। यहां तक कि कुछ साल पहले उनके नाम की सिफारिश पद्मश्री पुरस्कार तक के लिए की गई थी।
उधर, जब इन दिनों अचानक सोशल मीडिया में सुनील उनियाल गामा की छीछालेदर हुई तो उनका आईटी सेल भी हरकत में आ गया। उनके लोगों को ने गामा को करिश्माई और दूरदर्शी नेतृत्व वाला बताते हुए एक साल आठ महीने के वे काम गिनाने शुरू कर दिए, जो नगर निगम के दायित्वों की श्रेणी में आते हैं। बहरहाल, सुनील उनियाल गामा पर लगा यह परिवार को एडजस्ट करने का दाग बहुत जल्दी मिटने वाला नहीं है।

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