अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
डिग्रियों पर केविड-19 का ठप्पा नहीं लगने देंगे हमः ’निशंक’
देहरादूनः विश्वविद्यालयों की अंतिम वर्ष की परीक्षाओं पर छाए संशय के बादल छंट गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के परीक्षा करवाने के निर्णय को सही ठहरा दिया है। कोर्ट ने कहा कि राज्यों को कोई अधिकार नहीं कि वे बिना परीक्षा दिए छात्रों को पास करें। यही बात केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय भी कहता आ रहा है कि जैसे कैसे भी हों, लेकिन ये परीक्षाएं हर हाल में हों। उधर, यदि अब भी नीट और जेईई की तरह इन परीक्षाओं का भी कतिपय लोगों को द्वारा विरोध किया जाता है तो यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण ही होगी, क्योंकि शिक्षा को राजनीति में घसीटना छात्रों के साथ खिलवाड़ करना है। वैसे अब इस मुद्दे पर विरोध होने की संभावना नहीं के बराबर है, क्योंकि अब सुप्रीम कोर्ट फैसला दे चुका है।
विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 से देश की शिक्षा व्यवस्था भी बुरी प्रभावित हो गई थी। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने समय रहते इसे संभाल लिया था। इस दौरान बच्चों को आॅनलाइन शिक्षण दिया गया। ग्रेजुएशन प्रथम, द्वितीय तथा पीजी प्रथम वर्ष के छात्रों को कुछ नियमों के आधार पर प्रमोट करने का प्रावधान किया गया, जबकि ग्रेजुएशन और पीजी अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए परीक्षा अनिवार्य कर दी गई। मंत्रालय का मानना था कि बिना परीक्षा पाए किए इन छात्रों पर कोविड-19 का ठप्पा लगा सकता है और उनकी डिग्रियों पर सवाल उठ सकते हैं। इसलिए बच्चों के भविष्य के दृष्टिगत परीक्षा आयोजित करनी अनिवार्य है।
यूजीसी ने 6 जुलाई को इस संबंध मंे निर्णय लिया था। इसमें कहा गया था कि यूजी और पीजी पाठ्यक्रमों के अंतिम वर्ष या सेमेस्टर की परीक्षाओं को अनिवार्य रूप से 30 सितंबर,2020 तक पूरा किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा है। अब स्पष्ट हो गया है कि ये परीक्षाएं हर हाल में होकर रहेंगी। कोर्ट ने कहा है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत राज्यों में महामारी को देखते हुए परीक्षाएं स्थगित की जा सकती हैं। जो राज्य 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं कराने के इच्छुक नहीं हैं, उन्हें यूजीसी को इससे अवगत कराना होगा।
गौरतलब है कि जब यूजीसी ने उक्त फैसला लिया था, तभी से कोविड-19 के दौरान परीक्षाएं कराने का विरोध किया जा रहा है। इस संबंध में विभिन्न संस्थानों के 31 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट मंे याचिका दाखिल की थी, जिसमें परीक्षाएं रद करने की मांग की गई थी। मांग की गई थी कि छात्रों के रिजल्ट, उनके आंतरिक मूल्यांकन या पिछले प्रदर्शन के आधार पर बनाए जाएं। अब कोर्ट ने इस संबंध में निर्णय दे दिया है। इससे लाखों छात्रों और अभिभावकों के मन में इस परीक्षा को लेकर चल रहा संशय दूर हो गया है। साथ ही विश्वविद्यालय और काॅलेज अब परीक्षा की तैयारी को अंतिम रूप दे सकेंगे।
इस संबंध में शिक्षाविद डाॅ. प्रीति हांडा कक्कड़ का कहना है कि जब सब कुछ चल रहा है तो परीक्षाओं का विरोध) क्यों? भले ही परीक्षाओं को सरल कर दें, उनका समय कम कर दें, लेकिन फाइनल ईयर की परीक्षाएं तो हर हाल में होनी ही चाहिए। रही बात सुरक्षा की तो यह संबंधित संस्थान का दायित्व है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागतयोग्य और छात्रों के हित में है।
उधर, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल ’निशंक’ ने कहा है कि हमें शिक्षा जैसे मसले को राजनीति से दूर रखना चाहिए और राजनीति को और शिक्षित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह फैसला छात्र हित में है। हम पहले से ही कहते आ रहे हैं कि हम नहीं चाहते कि हमारे अंतिम वर्ष अथवा अंतिम सेमेस्टर के छात्रों की डिग्री सवालों के घेरे में रहे। परीक्षा चाहे जैसी भी हो, लेकिन अनिवार्य रूप से होनी चाहिए, ताकि कल ये विद्यार्थी गर्व के साथ कह सकें कि हम प्रमोट नहीं हुए, बल्कि परीक्षा देकर पास हुए हैं। डाॅ. ’निशंक’ ने कहा कि अब संबंधित छात्रों को परीक्षा देने की तैयारी और संस्थानों को परीक्षा दिलाने की तैयारी में जुट जाना चाहिए।
(डाॅ. वीरेंद्र बर्त्वाल)