एक पुरानी सूक्ति है “जहां जहां पड़े संतन के चरण तंह तंह बंठाधार”। तब यह सुक्ति समाज के कुछ विशिष्ट जनों को सुशोभित करती रही हो, लेकिन आज राजनैतिक परिवेश में कई राजनैतिक संतो के लिए उपयोग में आती हैं। पार्टी के भीतर फूट डालो राज करो और नेता बदलो की नीति पर चलने वाले ऐसे नेता है भाजपा के पूर्व महामंत्री ज्योति गैरोला। बात उनके जनाधार की नहीं बल्कि उनके समय समय पर बदलते ठिकानो और निष्ठा को लेकर है। राज्य गठन के समय वह पार्टी में संगठन मंत्री थे तो रुतवा भी था। उनके कार्यकाल में पार्टी दफ़्तर में हुई चोरी का मामला भी सुर्खियों में आया। अंतरिम सरकार के समय वह कुछ समय पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी जी के साथ गलबहियां करते दिखें तो उनकी बिदाई होते है भगत दा के खास हो गये। लेकिन भगत दा को मौका नहीं मिला तो पलटी मारकर जनरल खंडूरी की राह पकड़ ली। मौज लेते रहे सरकार का और जैसे ही जनरल निपटे तो डॉ निशंक की डगर पकड़ ली। गैरोला वैसे तो निशंक के खासम खास सिपह्सालार माने जाते थे, लेकिन जनरल और निशंक के बीच आयी दूरियों की वजह भी उनको ही माना जाता है। जनरल खंडूरी को सलाह भी देते रहे और उनकी नाव डुबो दी। माहिर तैराक षड्यंत्र में माहिर ज्योति गैरोला की खासियत रही कि वह हमेशा दो नाव में पैर रखकर चलते है, और जो डूबने को हो उसे डुबोकर दूसरी पकड़ लेते हैं। 2011 में वह
राजनैतिक घटनाक्रम पर बारीकी से पार्टी के भीतर चल रही सरसराहट पर नज़र गाड़े रखे और जैसे ही खंडूरी की वापसी हुई तो जिंदाबाद करने पहली कतार में लग गये। फिर त्रिवेंद्र सरकार बनी तो श्रीमान महनुभाव बन गये,लेकिन त्रिवेंद्र की विदाई के बाद उनकी खिदमत में पहले जैसी स्थिति नहीं रही। तीरथ आए तो तीरथ पर डोरे डालने शुरू कर दिए और शुरू हो गई आवाजाही, लेकिन तीरथ अधिक दिनों तक नहीं टिक पाये और माननीय फिर बेगाने हो गये।
धामी सरकार में जलवा नहीं चल पाया क्योंकि धामी अपने राजनीतिक गुरु भगत सिंह कोशियरी के साथ हुए हादसों के साक्षी रहे है। बताया जाता है कि गुरु ने भी धामी को उनकी छांव से दूरी बनाने की हिदायत दी। इसलिए धामी ने भी कोई तवज्जो नहीं दी और अपने फन में माहिर नेता जी ने एक बार फिर नया ठिकाना ढूंढ लिया। नया ठिकाना भी है अपने जैसे ही हवाई परिवेश में चल रहे अनिल बलूनी। बलूनी इस समय राज्य भाजपा के कुछ नेताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बने है। भाजपा हाईकमान धामी को अगला मुख्यमंत्री घोषित कर चुकी हैं और बलूनी भी मायूसी से उस और निहार रहे है तो मौके की नजाकत को भांप कर नेता जी ने भी उनकी ओर दौड़ शुरू कर दी है। विगत दिवस एक कार्यक्रम के सिलसिले में जब बलूनी देहरादून आए तो जिस होटल में बलूनी रुके वहां नेता जी कुछ नेताओं को फोन कर मिलने को बुलाने लगे। फोटो सेसन और फिर शोसल मीडिया पर भेजने का सिलसिला। इसके जरिये नेताजी बलूनी के यहाँ पैठ बनाकर भविष्य के सपने देख रहे है। कहा जा रहा है कि अगर सरकार लौटकर आती हैं तो यह भी समीक्षा का विषय बन सकता है कि इसमें धामी का कितना योगदान रहा और अगर समीक्षा तक नौबत आयी तो बलूनी को दावेदार के रूप में पेश किया जाए। हालांकि यह अभी कल्पना ही है,लेकिन मौसम विज्ञानी नेता जी के बदलते ठिकाने तो खूब चर्चा में बने है।