नई शिक्षा नीति-2020ः छात्रों में मानवीय मूल्य और नैतिकता की भावना जगाना भी है उद्देश्य
देहरादून। आपको हैरत होगी, लेकिन यह सत्य है कि आज से लगभग 185 वर्ष पहले तक भारत की संपूर्ण समृद्धि का कारण गुरुकुल ही थे। 7 लाख, 32 हजार की संख्या के इन गुरुकुलों में 18 विषयों की पढ़ाई होती थी। ये विषय थे-वैदिक गणित, धातु विज्ञान, कारीगरी, खगोल शास्त्र, रसायन शास्त्र और कृषि शास्त्र इत्यादि। उन दिनों की भारत की साक्षरता लगभग 100 प्रतिशत थी, जबकि इंगलैंड की 17 फीसदी से भी कम। भारत को पूरी तरह गुलाम बनाने के लिए अंग्रेजों को यहां की समृद्धि नष्ट करनी थी, लेकिन इससे पहले उन्हें इन गुरुकुलों का अस्तित्व समाप्त करना था। उन्होंने यही किया। साथ ही अपना एजुकेशन सिस्टम भी यहां किया, जो भारत की दुर्दशा का बड़ा कारण है। नई शिक्षा नीति-2020 का उद्देश्य हमारे उस ज्ञान रूपी वैभव को पुनर्जीवित करना है, जिस कारण पूरे विश्व में हम विश्व गुरु बन पाए। छात्रों को एक उत्तरदायी नागरिक बनाने के साथ ही उनमें नैतिकता, करुणा, क्षमा, शांति, न्याय, निष्काम कर्म इत्यादि की भावनाएं विकसित करना भी नीति का उद्देश्य है।
अंग्रेज अफसर डी.बी. मैकाले को भारतीय शिक्षा व्यवस्था का साइलेंट किलर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। उसने पूरे भारत का भ्रमण कर यहां की शिक्षा व्यवस्था का गहनता से निरीक्षण किया और इसकी रिपोर्ट अपने बाॅस विलियम एडम को दी। ब्रिटिश पार्लियामेंट के हाउस काॅमन में एक बार जब उसने भारतीय शिक्षा व्यवस्था की खूबियां बताईं तो अंग्रेज दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर हो गए। उसने बताया कि भारत की समृद्धि का कारण वहां के गुरुकुल हैं। उनमें चारों वर्णों के लोगों, यहां तक कि स्त्री-पुरुषों को समान रूप से शिक्षा दी जाती है। वहां 7 लाख, 32 राजस्व गांव हैं। हर गांव में एक स्कूल है, जिसे वहां गुरुकुल कहा जाता है। एक गुरुकुल में कम से कम 200 और अधिकतम दो हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं। वहां माॅनिटोरियल एजुकेशन सिस्टम से पढ़ाई होती है। वहां 15 हजार 800 विश्वविद्यालय भी हैं।
इन्हीं गुरुकुलों के कारण भारत में खूब समृद्धि है। वहां सभी विषयों का ज्ञान दिया जाता है। यही कारण है कि मुझे आज तक भारत में न तो कोई भिखारी मिला और न ही कोई बेरोजगार। जीविका के लिए कोई दूसरे पर आश्रित नहीं है। वहां के शहर संपदा युक्त हैं। भारत का अकेला सूरत शहर संपदा के मामले में यूरोप के सभी शहरों पर भारी है।
मैकाले की इन बातों को सुनकर अंग्रेज दंग रह गए। मैकाले ने बताया समृद्धि के कारण भारत के लोगों को गुलाम बनाना आसान नहीं है। अंग्रेजों ने पूछा कि तो कैसे उन्हें गुलाम बनाया जाए? मैकाले ने सुझाव दिया कि सबसे पहले उनकी समृद्धि नष्ट करनी होगी और यह तभी संभव है, जब उनके गुरुकुलों को अस्तित्वविहीन किया जाए। अंग्रेजों ने हमारी गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था, जिसे वे इंडिजिनेस एजुकेशन सिस्टम कहते थे, के खिलाफ एक कानून बनाया, जिसके तहत पहले संस्कृत माध्यम से शिक्षा प्रदान करने वाले गुरुकुल प्रतिबंधित कर दिए गए, इसके बाद स्थानीय भाषाओं में शिक्षा देने वाले गुरुकुलों पर पाबंदी लगाई गई। सिर्फ उन्हीं शिक्षा केंद्रों का शिक्षा देने का अधिकार रखा गया, जो अंग्रेजी भाषा में शिक्षा प्रदान करते थे। इस प्रकार धीरे-धीरे हमारी समृद्ध शिक्षा प्रणाली इतिहास बन गई और हम मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम हो गए।
देखा जाए तो नई शिक्षा नीति-2020 एक प्रकार से ज्ञान का ऐसा समावेश है, जिसमें विद्यार्थी नौकरी पैदा करने वाला बने। बुनियाद से सीढ़ी-दर-सीढ़ी वह ज्ञान के विभिन्न सोपानों को पार करता हुआ उच्च शिखर पर पहुंचकर अपने विषय का निष्णात बन सकेगा। अध्यापक की गरिमा की रक्षा होगी और उसे गुरु का वह सम्मान प्राप्त होगा, जिसके लिए भारतीय संस्कृति की पहचान रही है।
नीति में प्रावधान है कि ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों मंे शिक्षकों के लिए आवास बनाए जाएंगे और स्कूलों को पुस्तकों से समृद्ध किया जाएगा। भारतीय ज्ञान प्रणालियों पर एक आकर्षक पाठ्यक्रम वैकल्पिक के रूप में माध्यमिक विद्यालयों में छात्रों के लिए उपलब्ध होगा। विद्यार्थियों को कम उम्र में ’सही को करने’ के महत्त्व को सिखाया जाएगा। सभी कार्यों में नैतिक आचरण अपनाने में सक्षम बनाने पर जोर दिया जाएगा। विद्यार्थियों में बुनियादी मानवीय और संवैधानिक मूल्य विकसित किए जाएंगे। उनमें त्याग, सहिष्णुता, निष्काम कर्म, धैर्य, क्षमा, सहनशीलता, समानता और बंधुत्व के गुण और भावनाएं विकसित की जाएंगी।
(डा.वीरेंद्र बर्त्वाल)