’अपने’ ही विधायक ने ही उड़ाई ’जीरो टाॅलरेंस’ की खिल्ली

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लोहाघाट के विधायक पूरण फर्त्याल का भ्रष्टाचार को लेकर सरकार पर हमला

देहरादूनः क्या त्रिवेंद्र सिंह रावत भ्रष्टाचार रोकने में नाकाम रहे हैं? क्या उनके ’जीरो टोलरेंस’ सिद्धांत की खिल्ली उड़ रही है? क्या उनके ही विधायक उनकी कार्यशैली से खफा हैं? क्या बिगड़ैल विधायक कुंवर प्रणव को पार्टी में अंदर किए जाने से त्रिवेंद्र उन पर भी सवाल उठे हैं? यदि आप उत्तराखंड के वर्तमान हालात का बारीकी से निरीक्षण और विश्लेषण करेंगे तो आपको इन सवालों का जवाब हां में मिलेगा।

उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता कोई नई बात नहीं है। बीस साल में आठ मुख्यमंत्री देख चुके इस राज्य में विकास नहीं के बराबर है। वर्ष 2000 में उत्तराखंड के साथ गठित छत्तीसगढ़ और झारखंड की दशा देखें तो हम उत्तराखंड को इनसे कहीं पीछे पाते हैं। बल्कि यूं कहें कि यह राज्य विकास के लिए छटपटा रहा है। विकास और रोजगार के मसले पर उपजे आंदोलन के परिणामस्वरूप मिले इस राज्य में विकास नेपथ्य में चला गया और भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत गैरसैंण में जमीन खरीदकर स्वयं को पहाड़ का हितैषी घोषित करवाने के प्रयास में हों, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। राज्य में इन दिनों बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मसले पर उनकी फजीहत हो रही है। उन्हीं की अनेक घोषणाएं अधर में हैं। विकास ठप होने और भ्रष्टाचार जैसे मसलों पर उन्हीं के पार्टी के अनेक विधायकों ने उनके खिलाफ आवाज बुलंद कर दी है। स्थिति कुछ हरीश रावत काल जैसी ही हो गई है, जब उनके ही कुछ विधायकों ने हरीश रावत के खिलाफ बगावती तेवर अपना लिए थे और हरीश रावत ने उन्हें संतुष्ट करने के लिए भारी-भरकम धनराशि देने की सहमति दे दी थी।
वर्तमान की बात करें तो बताया जा रहा है कि त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ उन्हीं के अनेक विधायक सख्त नाराज चल रहे हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के नेतृत्व में वे हाल ही में पार्टी के राष्ट्रीय प्रमुख जेपी नड्डा तक मिल चुके हैं। इधर, लोहाघाट के विधायक पूरण फर्त्याल ने तो त्रिवेंद्र के खिलाफ एमक ’युद्ध’ ही छेड़ दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सहमत और त्रिवेंद्र रावत से असहमत नजर आ रहे फत्र्याल त्रिवेंद्र रावत के ’जीरो टाॅलरेंस’ की जबरदस्त खिल्ली उड़ा रहे हैं। फर्त्याल की मानें तो उनकी लड़ाई भ्रष्टाचार को लेकर है, जिसे रोकने में त्रिवेंद्र रावत पूरी तरह विफल हुए हैं। वे कहते हैं कि राज्य में फर्जीपन का खेल चल रहा है। आज फर्जी प्रमाण पत्रों पर ठेका मिल रहा है, कल ऐसे फर्जी प्रमाण पत्रों से नौकरियां हासिल की जाएंगी, लाइसेंस बनेंगे और फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर ही बैंकों से लोन लिया जाना लगेगा। टनकपुन-जौलजीवी मोटर मार्ग के एक टेंडर में घपलेबाजी का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि यह मामला मैं विधानसभा में भी उठा चुका हूं, मैं अपनी लड़ाई जारी रखूंगा। राज्य में ’जीरो टाॅलरेंस’ पर पलीता लग चुका है। उनके अनुसार मैं गलत के विरोध में लड़ रहा हूं, यह मेरा व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है। घपलेबाजी के बावजूद आरोपी ठेकेदार को ग्रीन सिगलन देकर उसीको ठेका देना राज्य के साथ सरासर अन्याय है।

मामला जो भी हो, लेकिन जैसे-जैसे समय आगामी विधानसभा चुनावों की ओर खिसक रहा है, भाजपा विधायकों की बेचैनी बढ़ रही है। लगभग छह महीने कोरोना के गाल में समा जाने से विधायकों को वैसे भी कार्य कराने का मौका नहीं मिल पाया और यह अभी तय नहीं है कि स्थितियां कब पूरी सामान्य होती हैं। उनके पास फिलहाल जनता को संतुष्ट करने को कुछ भी नहीं है। जनता की नराजगी दिखने लगी है। गाहे-बगाहे अनेक विधायक जनता की नाराजगी झेल भी रहे हैं। विधायकों को आगामी विधानसभा चुनाव की चिंताने लगी है कि वे किन उपलब्धियों के सहारे जनता के बीच जाएंगे। इसलिए त्रिवेंद्र पर सीधा वार न करने के बजाय उन्होंने हाईकमान के समक्ष नाराजगी जताना शुरू कर दिया है, लेकिन पूरण फर्त्याल ने उदाहरण देकर सीधा बयान देकर अपने ही मुख्यमंत्री पर एक प्रकार से सीधा हमला कर दिया है। हालांकि इसका परिणाम स्वयं फत्र्याल ही भुगतेंगे या त्रिवेंद्र रावत अथवा मामले का समाधान हो जाएगा? यह भविष्य के गर्व में है।

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