अपने गांव के ही होंगे गुरुजी, गुरुकुल होंगे गुलजार

 


शिक्षा नीति-2020: स्कूलों में नियुक्ति के समय स्थानीय भाषा के जानकार को प्राथमिकता

देहरादूनः विद्यालय की इमारत कितनी ही शानदार और सुविधायुक्त हो, वहां अध्यापक नहीं तो उस स्कूल भवन का कोई महत्त्व नहीं। सृदृढ़ शिक्षा व्यवस्था की बुनियाद शिक्षक ही है, परंतु देश में ऐेसे बहुत से विद्यालय मिल जाएंगे, जहां अध्यापक हैं नहीं या अपेक्षित संख्या में नहीं है। नई शिक्षा नीति में शिक्षकों की कमी को गंभीरता से लेते हुए प्राथमिकता के साथ खाली पद जल्द और समयबद्ध तरीके से भरने का प्रावधान किया गया है। शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात (पीटीआर) का विशेष ध्यान रखे जाने के साथ ही यह भी ध्यान रखा गया है कि संबंधित विद्यालय में नियुक्त किए जाने वाला अध्यापक स्थानीय अथवा स्थानीय भाषा का जानकार हो।
देश के स्कूलों में अध्यापकों की कमी का रोना आज की बात नहीं है। प्रायः देखा जाता है कि कहीं अध्यापक हैं ही नहीं तो कहीं अपर्याप्त संख्या में हैं। अनेक विषयों के अध्यापक नहीं होते। इसका खामियाजा बच्चों को उस विषय में फेल होने या कम अंक हासिल करने के रूप भुगतना पड़ता है। गांवों में स्थिति अधिक खराब होती है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पलायन का एक बड़ा कारण कमजोर शिक्षा व्यवस्था ही है, क्योंकि अनेक विषयों के अध्यापक होते ही नहीं। वहीं, कहीं कक्षाओं में बच्चे एक अध्यापक के पढ़ाने के अनुपात के लिहाज से कहीं अधिक होते हैं। इस स्थिति में शिक्षण का प्रभावित होना स्वाभाविक है। शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त न होने से लोग अपने पाल्यों को शहरी क्षेत्रों या कस्बों में पढ़ाने को मजबूर होते हैं। नतीजतन, गांव के गांव खाली हो रहे हैं।
गांवों के विद्यालयों में कमजोर शिक्षा व्यवस्था का एक कारण स्थानीय शिक्षकों का न होना भी है। दूर-दराज के अधिकांश शिक्षक उतनी तन्मयता निष्ठा से बच्चों को नहीं पढ़ा पाते, जितना स्थानीय अध्यापक। गांव का अध्यापक अपनत्व की भावना के साथ बच्चों को पढ़ाता है और अपना अधिक समय भी स्कूल को देता है। यह बात स्वाभाविक भी है। बच्चों और अध्यापकों के बीच कई बार विचार विनिमय या संप्रेषण में भाषायी समस्याएं भी सामने आती हैं। स्थानीय अध्यापक अथवा स्थानीय भाषा का जानकार अध्यापक बच्चों को पढ़ाते समय स्थानीय भाषा में उदाहरण दे, उन्हें मुहावरों, लोकोक्तियों के माध्यम से पढ़ाए तो बच्चे जल्दी ग्रहण कर सकेंगे।
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा नीति-2020 में प्रावधान किया गया है कि सर्वप्रथम शिक्षकों के रिक्त पदों को जल्द से जल्द और समयबद्ध तरीके से भरा जाएगा। विशेष रूप से वंचित क्षेत्रों और उन क्षेत्रों में जहां शिक्षक-बच्चों की अनुपात दर ज्यादा हो या जहां साक्षरता की दर निम्न हो, वहां स्थानीय शिक्षक या स्थानीय भाषा के ज्ञाता शिक्षकों को नियुक्त करने पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा। सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रत्येक विद्यालय में शिक्षक- छात्र का अनुपात 30: 1 से कम हो और सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित बच्चों की अधिकता वाले क्षेत्रों के स्कूलों में यह अनुपात 25: 1 से भी कम हो।
इस संबंध में भारत सरकार के शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल ’निशंक’ का कहना है कि शिक्षकों के पद खाली न रह पाएं, इस बात का विशेष प्रावधान नई शिक्षा नीति में किया गया है। यह भी ध्यान रखा गया है कि किसी विद्यालय में नियुक्त होनेे वाला अध्यापक स्थानीय हो अथवा स्थानीय भाषा का जानकार हो। बच्चों की समझ और भाषा के लिहाज से यह महत्त्वपूर्ण है। ऐसे अध्यापकों द्वारा शिक्षण करने के बेहतर परिणाम सामने आएंगे।

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