सल्ट उपचुनाव के स्टार प्रचारकों की सूची में त्रिवेंद्र का नाम नहीं
देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाए जाने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद को निर्दोष साबित करने के लिए अपने को अभिमन्यु की संज्ञा दे रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि उनके शासनकाल में उनकी नाक के नीचे बहुत कुछ होता रहा और वे इसे नजरअंदाज किए रहे। अभिमन्यु निर्दोष था, इसलिए उसकी मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडवों में प्रतिशोध और आक्रोश का ज्वार उमड़ आया था, परंतु त्रिवेंद्र का ताज छिनने के बाद कहीं से भी आक्रोश और प्रतिशोध के स्वर नहीं सुनाई दिए। किसी टीम के खराब प्रदर्शन के लिए कप्तान भी दोषी होता है, ऐसे में त्रिवेंद्र रावत को किस आधार पर निर्दोष कहा जाए? फिसड्डी मुख्यमंत्री का तमगा लेकर गए त्रिवेंद्र की टीम ने उनकी छवि पर जो बट्टा लगाया, उसकी भरपाई करने के लिए उन्हें नाकों चने चबाने पड़ सकते हैं। त्रिवेंद्र की छवि पर गहरे दागों का अंदाजा इसीसे लगाया जा सकता है कि उन्हें सल्ट विधानसभा उपचुनाव की प्रचार टीम का हिस्सा तक नहीं बनाया गया। हालांकि बाद में पार्टी ने बताया कि त्रुटिवश त्रिवेंद्र का नाम अंकित होने से रह गया था। हालांकि इस बात में झोल इसलिए है कि एक पूर्व मुख्यमंत्री (हाल ही में कुर्सी से हटाए गए )का नाम इतनी महत्त्वपूर्ण सूची में क्यों शामिल नहीं हो पाया?
उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों के इतिहास का यह सबसे अहम पहलू है कि उनकी छवि खराब करने में उनके मातहतों और सलहाकारों की बड़ी भूमिका रही। भुवनचंद्र खंडूड़ी की छवि पर एक अफसर प्रभात कुमार सारंगी ने बट्टा लगाया तो हरीश रावत को उनके दो-तीन बगलगीरों ने बदनाम किया। त्रिवेंद्र रावत राज में तो इसकी इंतहा ही हो गयी। बताया जाता है कि त्रिवेंद्र के उद्योग सलाहकार केएस पंवार, धीरेंद्र पंवार, मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट और एक अधिकारी मेहरबान सिंह बिष्ट ने उनकी साख को खासा नुकसान पहुंचाया। त्रिवेंद्र पर जातिवाद फैलाने के आरोप भी लगे हैं। औद्योगिक सलाहकार केएस पंवार पर लगभग तीन सौ करोड़ की मनी लांड्रिंग का आरोप है। केएस पंवार के चैनल की दर्शक संख्या कम होने के बावजूद उसे त्रिवेंद्र सरकार में करोड़ों के विज्ञापन जारी किए गए।
मुख्ममंत्री के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट और अमृतेश चैहान के बीच कथित भ्रष्टाचार के मामले में फोन पर हुई बातचीत चर्चा में रही। व्यास बनकर रामकथा वाचन करने से रमेश भट्ट की स्थिति हास्यास्पद बनी। त्रिवेंद्र सिंह रावत मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट और धीरेंद्र पंवार पर एक जगह औने-पौने दामों पर पार्टनरशिप में जमीन खरीदने का भी आरोप है। त्रिवेंद्र के शासनकाल में सूचना विभाग के एक आला अधिकारी की मनमानी चर्चाओं में रही। पत्रकारों को सरकार सीएम और सरकार के कारनामे उठाने की सजा मुकदमे दर्ज किए जाने के रूप में भुगतनी पड़ी। इलाज न मिलने पर गर्भवती महिलाओं का अस्पताल ले जाते समय मौत के मुंह में चले जाना जैसी घटनाओं ने भी त्रिवेंद्र सरकार को कठघरे में लिया। कोरोना काल में शराब की बिक्री और देवप्रयाग जैसे तीर्थ स्थल पर शराब की दुकान खुलवाना, प्रसिद्ध मंदिरों के लिए देवस्थानम बोर्ड की स्थापना, गैरसैंण को कमिश्नरी बनाना, तबादले की गुहार लेकर आयी उत्तरा पंत बहुगुणा नामक अध्यापिका से त्रिवेंद्र रावत द्वारा अभद्रता किया जाना जैसे मामलों ने भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की साख पर बट्टा लगाया। इसके अतिरिक्ति उनके विधायक और मंत्री अंदरखाने त्रिवेंद्र से बहुत नाराज थे।
चुनाव निकट आते देख पार्टी को मजबूरी में त्रिवेंद्र से ताज छीनकर उनकी जगह तीरथसिंह रावत को बैठाना पड़, लेकिन अब त्रिवेंद्र रावत अपने डोईवाला विधानसभा क्षेत्र में अनेक कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं। एक जगह उन्होंने स्वयं को ’अभिमन्यु’ करार दिया। उनका आशय संभवतः यह था कि उन्हें साजिश के तहत कुर्सी से हटाया गया, लेकिन अपने और अपने मातहतों-सलाहकारों के कारनामों पर शायद वे गौर नहीं कर रहे हैं।
दूसरी ओर, सल्ट विधानसभा क्षेत्र में होने वाले उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने के लिए पार्टी ने स्टार प्रचारकों की सूची जारी कर दी है। इस सूची से त्रिवेंद्र का नाम गायब है। इसका कारण यही माना जा रहा है कि अनेक आरोपों से घिरे त्रिवेंद्र रावत का नाम पार्टी ने उक्त सूची में इसलिए शामिल नहीं किया कि कहीं पार्टी को इसका खामियाजा न भुगतना पड़े। बहरहाल यह खबर त्रिवेंद्र के लिए एक और बड़ा झटका हो सकती है। इस सूची में प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डाॅ0 रमेश पोखरियाल निशंक, दुष्यंत कुमार गौतम, अजय भट्ट, अजय टम्टा, अनिल बलूनी, नरेश बंसल, डाॅ0 धनसिंह रावत, सतपाल महाराज, बिशन सिंह चुफाल, रेखा आर्या, यशपाल आर्य आदि के नाम शामिल हैं।