देहरादूनः ’’संस्कृत और संस्कृति हमारे देश के प्राण हैं। ये रहेंगे तो हमारी पहचान रहेगी, हमारा अस्तित्व रहेगा, हम समृद्ध और सशक्त बनेंगे। बहुसंख्य लोगों में संस्कृत के विषय में अधूरी जानकारी और उसके महत्त्व का ज्ञान न होने से वह हाशिये पर गई है, लेकिन लगता है अब उसका प्राचीन वैभव और वर्चस्व पुनः लौट आएगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में संस्कृत के संरक्षण और उसे आगे बढ़ाने के बेहतरीन प्रावधान हैं। इस नीति के क्रियान्वयन के पश्चात संस्कृत प्रयोग के लिहाज से अनेक भारतीय भाषाओं की बराबरी कर सकेगी। सरकार के भरोसे न बैठकर संस्कृत से जुड़े लोगों को भी संस्कृत को बढ़ावा देने के प्रयास करने होंगे।’’
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (पूर्व में राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान) के कुलपति प्रो. परमेश्वर नारायण शास्त्री की यह राय है नई शिक्षा नीति पर।
एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा-नई शिक्षा नीति में भारतीयता की भीनी-भीनी सुगंध है। पहली बार भारत की आत्मा को शिक्षा नीति में समझा और समझाया गया है। यूं तो सभी भाषाओं के लिए, लेकिन विशेष तौर पर संस्कृत के लिहाज से यह नीति श्रेष्ठ है। इसे केवल मंत्रों और शास्त्रों तक ही सीमित न रखकर उसे भाषा के रूप में भी महत्त्व दिया गया है। नई शिक्षा नीति में इसे त्रिभाषा के मुख्यधारा विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसके शिक्षण का तरीका बदला गया है। ध्वनि और उच्चारण का विशेष ध्यान रखा गया है। खगोल शास्त्र, गणित, नाटक, योग आदि विषयों से इसे जोड़े जाने के बाद इसका महत्त्व और बढ़ेगा। इसके परिणामस्वरूप संस्कृत का क्षेत्र व्यापक होगा। इसके प्रति लोगों में रुचि जगेगी। इसे पढ़ने वालों की संख्या बढ़ेगी तो इस भाषा में रोजगार बढ़ना स्वाभाविक है।
एक प्रश्न के उत्तर में प्रो. शास्त्री ने कहा-भारतीय शिक्षा को विश्वभर में फैलाना सराहनीय है। बाहर के कुछ विश्वविद्यालय यहां आकर हमारे छात्रों को ज्ञान देंगे, लेकिन उस ज्ञान की सीमा हो। वे लोग अपनी मनमानी न कर पाएं। वे हम पर अपना जबरदस्ती का ज्ञान और कानून न थोपें, यह भी आवश्यक है। हां, इससे देश में एक बेहतरीन शैक्षिक वातावरण बनेगा और बच्चों में प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ेगी, जो आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है। विदेश के विश्वविद्यालयों के यहां आने से हमारी प्रतिभा का पलायन नहीं हो पाएगा।
इस शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के बाद हमारे विश्वविद्यालयों का स्तर कुछ वर्षों बाद बहुत ऊंचा उठ जाएगा, ऐसी मैं उम्मीद करता हूं।
संस्कृत और संस्कृत वालों की दशा कैसे सुधरेगी, इस सवाल के जवाब में कुलपति प्रो. परमेश्वर नारायण ने कहा कि संस्कृत की दशा सुधारने के लिए सरकार ने नई शिक्षा नीति में पर्याप्त प्रावधान कर दिए हैं, लेकिन हमें भी तो सरकार के भरोसे नहीं रहना है। हमें पुरानी लीक त्यागनी होगी। पुरानी सोच से बाहर आना होगा। परंपराओं का पालन करते हुए हमारा चिंतन आधुनिक होना चाहिए। संस्कृत को आधुनिकता के साथ जोड़ना होगा। समय के साथ बदलने वाले की स्वीकार्यता होती है, जो समय के साथ नहीं बदलता, उसके अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो जाता है। सरकार ने जो किया, हमारा दायित्व है कि हम उसे आगे बढ़ाएं, उसमें सहयोग दें। संस्कृत के संरक्षक और प्रचार-प्रसारकर्ता वेतन लेकर पढ़ाने तक ही सीमित न रहें। उनका ही नहीं, देश के समस्त नागरिकों का दायित्व है कि इस भाषा के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में योगदान दें। हम संस्कृत को कठिन के बजाय सरल रूप में प्रस्तुत कर लोगों को इसे अपनाने को प्रेरित करें। हम आधुनिक विषयों के साथ संस्कृत को जोड़ रहे हैं। हम अनेक मेडिकल और इंजीनियरिंग संस्थानों के साथ एमओयू करेंगे। इससे वहां भी संस्कृत का उपयोग होगा। परिणामस्वरूप संस्कृत के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी।
प्रो. परमेश्वर नारायण शास्त्री के अनुसार भारतीय सांस्कृतिक परंपरा को शिक्षा का आधार बनाया गया है। शिक्षा ग्रहण करने में अनेक जटिलताओं को तोड़कर जो स्वच्छंदता प्रदान की गई है, उससे छात्रों का पढ़ने के प्रति रुझान बढ़ेगा। दूरस्थ शिक्षा को महत्व दिए जाने से वे लोग भी संस्कृत पढ़ पाएंगे, जो किन्हीं विवशताओं के चलते ऐसा नहीं कर पाते थे। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का मुक्त स्वाध्याय पीठ वर्षों से यह कार्य कर रहा है।
कुलपति प्रो. शास्त्री से जब पूछा गया कि क्या संस्कृत को स्कूल, काॅलेज, विश्वविद्यायों में अनिवार्यता के साथ पढ़ाए जाने का प्रावधान होना चाहिए था? इसके उत्तर में उनका कहना था-मैं इसका पक्षधर नहीं हूं। जब हम कोई चीज थोपते हैं, उसके अपेक्षित परिणाम नहीं आते हैं। उसे जब हम सहजता से स्वीकारने के लिए प्रेरित करते हैं तो अच्छे परिणाम आते हैं। इस नीति में यही हुआ है। संस्कृत को थोपा नहीं गया है। उसे अपनाने की परिस्थितियां उत्पन्न की गई हैं। यह नीति निर्माताओं की बेहतरीन शिल्प और बौद्धिक श्रेष्ठता का प्रमाण है।
आपके विश्वविद्यालय का संस्कृत के कल्याण में क्या योगदान है? इस पर प्रो. शास्त्री कहते हैं-हम वर्षों से संस्कृत की यथासंभव सेवा कर रहे हैं। वर्तमान में हम सभी परिसरों में आपस में बैठक और गोष्ठियों के माध्यम से विमर्श कर रहे हैं कि इसे बढ़ावा देने के लिए क्या-क्या प्रयास किए जाएं। नई शिक्षा नीति पर क्रियान्वयन से न केवल संस्कृत का कल्याण होगा, बल्कि उससे जुड़े लोगों का भी कल्याण होगा।
नई शिक्षा नीति में शोध पर विशेष ध्यान दिया गया है। यह अच्छी पहल है। शोध के बिना शिक्षा का विकास संभव नहीं है। हमारा विश्वविद्यालय भी शोध की प्रवृत्ति बढ़ाने और इसके लिए छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए शोध छात्रवृत्ति दुगुनी करेंगे।
(डॉ. वीरेन्द्र बर्त्वाल)