बीमारी ने याद दिलाए विपक्षी तेवर

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निजी अस्पतालों और सरकार के खिलाफ इंदिरों के कड़े तेवरों का मतलब?

देहरादून। जब तक सामना न हो परेशानी महसूस नहीं होती। चलिए बीमारी के बहाने नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश को राज्य की चिकित्सा व्यवस्था की खस्ता हालत का पता तो चला। इंदिरा हृदयेश को निजी अस्पतालों की मनमानी की बात भी पता चल गयी। अब वे निजी अस्पतालों की मनमानी के खिलाफ कदम उठाने की बात कर रही हैं। सवाल यह भी है कि माना कि सरकार चिकित्सा व्यवस्था के मामले में उदासीन है तो विपक्ष साढ़े तीन साल तक क्यों सोया रहा? राज्य के दो अस्पतालों से असंतुष्ट इंदिरा आखिर इलाज के लिए गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में चले जाना इस बात का संकेत है कि राज्य के कोई भी अस्पताल वीआईपी ट्रीटमेंट लायक नहीं हैं।
इंदिरा हृदयेश इन दिनों दो कारणों से चर्चा में हैं। कुछ दिन पहले उन्होंने पार्टी के कार्यक्रम में एक वरिष्ठ कार्यकर्ता को एसी सुविधा उपलब्ध न कराने पर खरी-खोटी सुनाई थी। सोशल मीडिया में इसकी खासी आलोचना हुई। उन्हीं की पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं तक ने उनकी निंदा कर डाली। इंदिरा तब से ’एसी वाली मैडम’ के नाम से चर्चित हो गईं। इसके कुछ दिन बाद इंदिरा की तबीयत खराब हो गईं। वे हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल मंे भर्ती हुईं। इसके बाद उन्हें देहरादून स्थित मैक्स अस्पताल लाया गया। पता चला कि उन्होंने वहां अलग कमरा मांगा, पर अस्पताल प्रशासन ने असमर्थता जताई। वैसे भी इन दिनों कोरोना का कहर व्याप्त होने के कारण अस्पतालों में भीड़ है, इसलिए अस्पतालों की भी मजबूरी है कि वे मरीजों की हर सुविधा की मांग पूरी नहीं कर सकते हैं। अलग कमरा न मिलने पर इंदिरा हृदयेश भड़क गईं और अपनी सरकारी कोठी पर आ गईं और इसके बाद मेदांता अस्पताल चली गईं।
इंदिरा ने चिकित्सकीय अव्यवस्था के लिए सरकार को भी कोसा और निजी अस्पतालों के खिलाफ भी नाराजगी जताई है।
अब सवाल यह है कि इंदिरा ने शुरू से ही सरकारी चिकित्सा व्यवस्था का हाल क्यों नहीं जाना। नेता प्रतिपक्ष मुख्यमंत्री के समकक्ष होता है। उसे मुख्यमंत्री के लगभग ही सुविधाएं मिलती हैं, लेकिन राज्य में बेरोजगारी, कोरोना काल में मरीजों और आम जनता की समस्या, भ्रष्टाचार, शराब की बिक्री, बड़बोले विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन को भाजपा में वापस लिए जाने इत्यादि अनेक मसलों पर वे मौन ही साधे रहीं। पहले से ही राज्य में विपक्ष पर ’मित्र’ की भूमिका के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन इस बार भी यह परंपरा नहीं टूटी। इस सरकार के काल में राज्य के मसलों पर विपक्ष का ऐसा कोई बड़ा जनांदोलन नहीं रहा, जिसके लिए विपक्ष को याद किया जाए।
यहां तक कि पूरे कोरोना काल में इंदिरा ने चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाए। निजी अस्पतालों की उत्तराखंड में लूट और मनमानी की खबरें काफी पहले से आ रही हैं, लेकिन इंदिरा को इसका पता तब चला, जब उन्हें अस्पताल में अलग कमरा नहीं मिला। हल्द्वानी के अस्पताल में आखिर वे सुविधाएं क्यों नहीं हैं, जिनके कारण इंदिरा को मैक्स अस्पताल में आना पड़ा? आखिर वहां अभी भी तो मरीजों का इलाज हो रहा है। और यदि वहां सुविधाएं नहीं हैं तो उसके लिए सरकार के साथ ही विपक्ष भी दोषी है। इंदिरा को सोचना चाहिए कि जब हल्द्वानी और देहरादून जैसे राज्य के मुख्य शहरों में चिकित्सा सुविधा की यह हालत है तो दूर-दराज के गांवों के लोग कैसे इलाज कराते होंगे? यह बात अब राज्य और स्वयं इंदिरा हृदयेश के हित में होगी कि वे राज्य की खस्ता चिकित्सा व्यवस्था को दुरुस्त करने को एक मुहिम छेड़ें। त्रिवेंद्र रावत सरकार को भी सबक लेना होगा कि जब वीआईपी ही यहां उचित इलाज को तरस रहे हैं तो आम जन की क्या दशा होगी? सरकार को इस बात का संज्ञान लेना होगा कि उत्तराखंड के दूर-दराज के गांवों से पलायन की बड़ी वजह गांवों में चिकित्सा व्यवस्था की दयनीय दशा होना है।
बहरहाल, इंदिरा हृदयेश इन दिनों अस्पताल में हैं। हम उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं।

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