नई शिक्षा नीति में संस्कृत को महत्त्व दिए जाने की बात सराही गई
–केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, देवप्रयाग में संस्कृत सप्ताह का शुभारंभ
देवप्रयागः नई शिक्षा नीति के स्वरूप को देखकर लगता है कि फिर से संस्कृत के पुराने दिन लौट आएंगे। शिक्षा नीति-2020 में इस भाषा को विशेष महत्त्व दिया गया है। सरकार के साथ ही उन लोगों का भी संस्कृत के संरक्षण और प्रचार-प्रसार का बड़ा दायित्व है, जिनकी जीविका संस्कृत भाषा है।
यह बात गुरुकुल कांगड़ी, हरिद्वार के कुलपति प्रो. रूपकिशोर शास्त्री ने कही। वे केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के श्रीरघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग के संस्कृत सप्ताह के शुभारंभ अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि विचार व्यक्त कर रहे थे। संस्कृत की दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर गौर करें तो उस समय संस्कृत बोलने वालों की संख्या लगभग 14 हजार थी, जबकि 1991 में यह संख्या लगभग 73 हजार थी। प्रो. शास्त्री ने चेताया कि किसी भाषा को बोलने वालों की संख्या 10 हजार से कम हो जाए तो वह भाषा संवैधानिक लाभ से वंचित हो जाती है, इसलिए हमें संस्कृत के मामले इस बात का ध्यान रखना होगा। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि सरकारी प्रयासों के साथ ही हम भी प्रयास करें कि हम इस भाषा का विस्तार अधिक से अधिक करें। उन्होंने कहा कि संस्कृत बोलने वालों की संख्या भारत में वैसे बहुत ठीकठाक है। महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों के अलावा मंदिरों, मठों और तीर्थस्थलों पर भी संस्कृत बोली जाती है, लेकिन उसके आंकड़े प्रकाश में नहीं आ पाते। उन्होंने कहा कि प्रसन्नता की बात है कि भारत सरकार की नई शिक्षा नीति में संस्कृत को विशेष महत्त्व दिए गए हैं। संस्कृत के उज्ज्वल भविष्य के लिहाज से यह कदम महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए केंद्र सरकार धन्यवाद का पात्र है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए निदेशक प्रो. के.बी. सुब्बरायुडू ने कहा कि भारत में जितनी भी मातृभाषाएं हैं, सभी में संस्कृत का अंश है। हम अनेक भाषाओं में ऐसे अनेक शब्दों का इस्तेमाल दिनभर में करते हैं, जिनके बारे में हमें पता ही नहीं होता कि ये शब्द संस्कृत के हैं। संस्कृत स्वयं में समृद्ध भाषा है, जिसे जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि यह वर्तमान सरकार की संस्कृत के प्रति श्रद्धा है कि नई शिक्षा नीति में इसे प्राथमिकता में रखा गया है।
गूगल मीट पर आयोजित कार्यक्रम में श्रीओम शर्मा और डाॅ. अनिलकुमार ने आरंभ में मंगलाचरण किया। प्रो. बनमाली बिश्वाल ने स्वागत भाषण दिया, जबकि संस्कृत सप्ताह कार्यक्रम के संयोजक डाॅ. सच्चिदानंद स्नेही ने प्रस्तावना प्रस्तुत की। धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. आर. बालमुरुगन ने तथा संचालन डाॅ. शैलेंद्र प्रसाद उनियाल ने किया। कार्यक्रम में डाॅ. कृपाशंकर शर्मा, डाॅ. दिनेशचंद्र पाण्डेय, डाॅ. वीरेंद्र बर्त्वाल, डाॅ. सुरेश शर्मा, डाॅ. अवधेश बिजल्वाण, पंकज कोटियाल, डाॅ. युवराज शर्मा, नवीन डोबरियाल आदि उपस्थित रहे। गौरतलब है कि एक सप्ताह तक चलने वाले संस्कृत सप्ताह के तहत विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है।