बंशीधर भगत की कार्यशैली पर सवाल

देहरादून। मीडिया प्रभारी को कार्यमुक्त करने सम्बन्धी प्रकरण से यह साफ हो गया है कि प्रदेश भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी प्रदेश कार्यालय से लेकर विभिन्न स्तरों पर इस प्रकरण को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। इस प्रकरण ने प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत की कार्यशैली पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

गौरतलब है कि दो दिन पहले बड़े नाटकीय अंदाज में सोशल मीडिया में पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत का एक पत्र वायरल हुआ। इस पत्र में भाजपा अध्यक्ष ने प्रदेश मीडिया प्रभारी अजेंद्र अजय द्वारा कार्य करने में असमर्थता जताए जाने की बात कह कर उन्हें कार्यमुक्त करते हुए प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व मीडिया प्रभारी डॉ देवेंद्र भसीन को मीडिया प्रभारी की अस्थाई तौर पर जिम्मेदारी सौंपने की बात कही। सोशल मीडिया में इस पत्र के वायरल होते ही मीडियाकर्मियों से लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं तक ने पत्र की हकीकत जानने के लिए फोन घन-घनाने लगे। आश्चर्य की बात है कि पत्रकारों ने जब पत्र की पुष्टि के अजेंद्र से संपर्क किया तो उन्होंने इस बारे में अनभिज्ञता जताते हुए मुद्दे पर कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं को भी इस खबर की कानों कान खबर नहीं थी। पत्रकारों को खबर की पुष्टि स्वयं प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत व डॉ देवेंद्र भसीन ने ही की।

मीडिया प्रभारी अजेंद्र अजय को हटाने को लेकर प्रदेश अध्यक्ष भगत द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को लेकर पार्टी के भीतर ही तमाम सवाल खड़े होने लगे हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष मीडिया में लगातार अपने बयान व खबरें चलते देखना चाहते थे। अध्यक्ष बनने के बाद वे कई पत्रकारों और संपादकों से मिलने भी गए। लेकिन इसके बावजूद वे मीडिया में उनको मिल रही कवरेज से संतुष्ट नहीं थे। इसके विपरित मीडिया प्रभारी अजेंद्र को मिल रही मीडिया कवरेज को वो पचा नहीं पा रहे थे।

अजेंद्र ने कोरोना काल में प्रदेश सरकार के विरुद्ध कांग्रेस द्वारा लगातार लगाए जा रहे आरोप – प्रत्यारोपों का ठोस व प्रभावी तरीके से मुंहतोड़ जवाब दिया। सौम्य व विन्रम स्वभाव के अजेंद्र पूर्व में पत्रकार रहे हैं और मीडियाकर्मियों से उनके दोस्ताना संबंध हैं। यही कारण है कि मीडियाकर्मी उनको खासा तवज्जों भी देते रहे हैं।

अजेंद्र वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद खासी चर्चाओं में रहे हैं। उन्होंने केदारनाथ पुनर्निर्माण घोटाले को उजागर किया था। इसके अलावा सूचना के अधिकार अधिनियम के द्वारा विभिन्न मुद्दों की जानकारी मांग कर तत्कालीन कांग्रेस सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था।

बहरहाल, अजेंद्र को मीडिया प्रभारी के पद से हटाए जाने के बाद प्रदेश अध्यक्ष की कार्यशैली को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में चर्चा होने लगी है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अजेंद्र को जब मीडिया प्रभारी बनाया जा रहा था तो उन्होंने तब अपनी वरिष्ठता के लिहाज से इस पद को लेकर अपनी अनिच्छा जाहिर की थी। लेकिन बाद में वे मान गए।

मीडिया प्रभारी नियुक्त होने के तीन माह बाद ही अजेंद्र को पद से हटाए जाने से पार्टी के वरिष्ठ नेता भी हैरान हैं। पार्टी नेता से लेकर आम कार्यकर्ता को यह बात अखर रही है कि किसी को भी बिना आरोप या कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना कैसे हटाया जा सकता है? पार्टी के संविधान में स्पष्ट है कि किसी भी व्यक्ति को पार्टी अथवा किसी पद से हटाने से पहले उसको कारण बताओ नोटिस जारी कर उसका स्पस्टीकरण लिया जाता है। फिर उस मामले को पार्टी की अनुशासन समिति को भेजा जाता है। अनुशासन समिति मामले पर व्यापक विचार विमर्श कर निर्णय लेती है। लेकिन अजेंद्र प्रकरण में इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और सीधे हटा दिया गया। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष ने इस मामले में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से सलाह मशविरा करना भी उचित नहीं समझा। प्रदेश अध्यक्ष के एकतरफा निर्णय से पार्टी के वरिष्ठ नेता भी हैरान हैं। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का यह मानना है कि सवाल अजेंद्र को हटाने का नहीं है। सवाल व्यवस्था और परम्परा का है। अजेंद्र प्रकरण से पार्टी में एक नई परम्परा पड़ सकती है। भविष्य में कोई भी प्रदेश अध्यक्ष और जिला अध्यक्ष किसी भी पदाधिकारी को अपनी पसंद और नापसंद के आधार पर कभी भी हटा देंगे। ऐसे में संगठन में गुटबाजी बढ़ेगी। संगठन कार्य प्रभावित होगा।

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