अब तीरथ को करवट में लिया चापलूस ’सलाहकारों’ ने

खंडूड़ी-निशंक, निशंक-त्रिवेंद्र और बलूनी-त्रिवेंद्र के बीच पैदा कर चुके खटास

नए मुख्ममंत्री को भी घेर डाला, अधिकारियों की तैनाती में दे रहे हैं दखल

देहरादून। कुछ अपना हुनर और कुछ करीबियों की सलाह, ये दोनों बातें किसी शासक की कामयाबी के लिए प्रमुख होती हैं, लेकिन जब सलाहकारों के मन में शासक का हित न होकर ’अपना और सिर्फ अपना हित’ हो तो शासक का गर्त में गिरना तय है। धोखा, षड्यंत्र और फरेब की राजनीति के माहिर दो ऐसे ही सियासी खिलाड़ियों की जोड़ी ने आखिर नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को भी करवट में ले ही लिया। एक दिन इसके दुष्परिणाम आने तय हैं। अच्छे-खासे राजनेता को धार लगाने में सिद्धहस्त यह जुंडली कान भरकर और ऊल-जुलूल सलाह देकर अपना मंसूबा पूरा करती है। उत्तराखंड की सियासत में यह जोड़ी पिछले दो दशक से कुख्यात है, जो निशंक, खंडूड़ी, त्रिवेंद्र को अपना शिकार बना चुकी है और अगला टारगेट तीरथ सिंह पर पासे डाले जा चुके हैं। ये लोग ’स्लो प्वाॅयजन’ देकर किसी राजनेता के कैरियर को चौपट करने की फिराक में रहते हैं तो झूठ का सहारा लेकर दो घनिष्ठ मित्रता वाले लोगों के बीच खटास भी पैदा कर देते हैं। कभी-कभी ये अपने साथ एक तीसरे साथी को भी रख देते हैं।
पूर्व दर्जा मंत्री ज्योति प्रसाद गैरोला और भाजपा के पूर्व प्रदेश महामंत्री सुरेश जोशी तीखी तिकड़में चलाने में माहिर हैं। अपने फायदे और दूसरे को डुबाने के लिए ये शतरंजी चालें चलते हैं। इनके इन कारनामों की शुरुआत उत्तराखंड के गठन के बाद से ही हो गयी थी। इनकी खासियत यह है कि जब भी भाजपा का कोई नेता सीएम की कुर्सी पर बैठता है तो ये उसे घेर लेते हैं और उसे ऐसी सलाह देने लगते हैं, जो उस नेता को बहुत नेक लगती है। इन्हें अपना हितैषी समझकर वह इन्हें अपना मानकर खासी तवज्जो देने लगता है, लेकिन जब उसे इनकी करतूतों का पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। आइए आपको इनके कुछ किस्से बताते हैं।
जब भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे तो ये ज्योति प्रसाद गैरोला और सुरेश जोशी ने खुद को डाॅ0 रमेश पोखरियाल निशंक का निकटस्थ होने ढोंग रच लिया। इन्होंने 2002 में निशंक को प्रदेश के मुख्यमंत्री का ख्वाब दिखाकर पूरे राज्य में उनके भ्रमण कार्यक्रम लगवा दिए। नतीजा यह हुआ कि वे अपनी विधानसभा सीट में प्रचार के लिए बड़ी मुश्किल से दो-तीन बार ही जा पाए। परिणामस्वरूप वे कुछ ही वोटों से विधानसभा चुनाव हार गए, क्योंकि वहां की जनता के बीच यह गलत मैसेज चला गया था कि निशंक को अपने क्षेत्र में आने का समय ही नहीं है।
2007 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा सत्ता में आयी और भुवनचंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने तो ये दोनों उनके बगलगीर बन गए। वे खंडूड़ी को सलाह देते रहे कि आप अपने स्वभाव के अनुसार कड़क ही रहिए। वे कार्यकर्ताओं से धीरे-धीरे दूर होते गए, परिणामस्वरूप जनता उनसे नाराज होने लगी। नतीजतन, खंडूड़ी के कार्यकाल में पांचों लोकसभा सीटों पर भाजपा की पराजय हो गयी, लेकिन फिर भी उन्हें आभास नहीं हो पाया कि इसके पीछे कारण क्या था। इसका खामियाजा खंडूड़ी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटने के रूप में भुगतना पड़ा। खंडूड़ी के बाद डाॅ0 निशंक को मुख्यमंत्री बनाया गया और मौका ताड़ कर इस जोड़ी ने निशंक के अगल-बगल ही डेरा लिया। इस बीच उत्तराखंड की सियासत में बड़ी चर्चा उभरकर आयी कि खंडूड़ी और निशंक के बीच राजनीतिक वैमनस्यता है। इसका सबसे बड़ा कारण ये दोनों ही रहे। कानाफूसी, इधर की उधर झूठी और चिकनी-चुपड़ी बातों से इन दोनों ने खंडूड़ी और निशंक के बीच खटास पैदा करने में कसर नहीं छोड़ी।
इधर, 2017 में भाजपा सत्ता में आयी और त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया। ये दोनों त्रिवेंद्र को घेरने में भी कामयाब हो गए। इन्होंने खंडूड़ी जैसी सलाह त्रिवेंद्र को भी दे डाली कि आप अपनी एक अलग इमेज बनाए और तनकर रहिए। इन्होंने कभी अनिल बलूनी तो कभी निशंक के खिलाफ त्रिवेंद्र के कान भरते हुए कहा कि ये दोनों आपके खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं। परिणाम स्वरूप निशंक और बलूनी को त्रिवेंद्र अपना कट्टर दुश्मन और इन दोनों को बडा हितैषी मान बैठे। इनकी सलाह पर काम कर त्रिवेंद्र रावत को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।
उधर, 10 फरवरी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे तीरथ सिंह रावत को इस जोड़ी ने उन्हें सलाहें देनी शुरू कर दी हैं, जैसे पिछले मुख्यमंत्रियों को देते रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि किस अधिकारी को कहां फिट करना, यह सलाह भी ये दोनों ही दे रहे हैं। यहां तक कि शैलेजी बगोली को मुख्यमंत्री का निजी सचिव बनाने में भी इन लोगों का ही हाथ बताया जाता है। सूत्र बताते हैं कि ये जोड़ी देर रात मुख्यमंत्री के साथ लम्बी दौर की बैठके रहते हैं, जबकि अभी तक सीएम के कार्यों और निर्णयों को लेकर मुख्यमंत्री की किसी वरिष्ठ पदाधिकारी के साथ अभी तक इतनी लंबी बैठकें नहीं हुई हैं। इन लोगों की सलाह का तीरथ के कार्यों और छवि पर कितना दुष्प्रभाव पड़ता है यह वक्त बताएगा, लेकिन भी सच है कि तीरथ सिंह रावत इनकी हरकतों से अवश्य विज्ञ होंगे, क्योंकि तीरथ सिंह रावत भुवनचंद्र खंडूड़ी को अपना गुरु मानते हैं और इन लोगों ने खंडूड़ी को कितना नुकसान पहुंचाया, यह बात तीरथ सिंह रावत को पता होनी चाहिए।
सूत्र यह भी बताते हैं कि पिछले दिनों इन लोगों ने राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के यहां भी डेरा डाले रखा। यह भी बताया जाता है कि कभी घनिष्ठ मित्र रहे त्रिवेंद्र और बलूनी के बीच दरार पैदा करने में इन लोगों की ही मुख्य भूमिका है।
ये अपने साथ तीसरे नेता बलराज पासी को भी रखते हैं। हालांकि उनका स्वभाव इन दोनों से थोड़ा भिन्न बताया जाता है, लेकिन बताया जाता है कि ये दोनों बलराज पासी को अपनी ’चालों’ में इस्तेमाल करते हैं, ताकि ’शिकार’ को यह पता लगे कि इनके साथ बलराज पासी जैसा ईमानदार व्यक्ति भी जुड़ा है।
बहरहाल, तीरथ सिंह रावत इन बिन बुलाए ’सलाहकारों’ से घिर चुके हैं। ये लोग क्या-क्या चाल चलते हैं और उनके कितने कान भरते हैं, इसका असर धीरे-धीरे दिखायी देने लगेगा। गौरतलब है कि पहले भी कई मुख्यमंत्री अपने सलाहकारों के कारण बदनाम ही नहीं हुए, बल्कि उन्हें नुकसान भी हुआ है। जब मुख्यमंत्रियों को सरकारी सलाहकार नुकसान पहुंचा सकते हैं तो ये तो ’स्वयंभू सलाहकार’ हैं। तीरथ सिंह रावत को अपनी छवि और भविष्य सुरक्षित रखना है तो इनसे दूर से ही नमस्कार करना होगा।

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