देहरादून। विश्वप्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का 94 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। वे कोविड-19 से प्रभावित थे और ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) में 8 मई को भर्ती हुए थे। वहीं उन्होंने अंतिम सांस ली।
सुंदर लाल बहुगुणा ने शुक्रवार को एम्स में अंतिम सांस ली। संस्थान के चिकित्सकों की टीम उनके स्वास्थ्य की निगरानी व उपचार में जुटी हुई थी। वे डायबिटीज के पेशेंट थे। उन्हें कोविड निमोनिया भी हो गया था। विभिन्न रोगों से ग्रसित होने के कारण वे पिछले कई वर्षों से दवाइयों का सेवन कर रहे थे। गुरुवार को उनका ऑक्सीजन सैचुरेशन 86 पर था। सुन्दरलाल बहुगुणा की स्थिति गुरुवार को स्थिर बनी हुई थी।
टिहरी में जन्मे सुंदरलाल उस समय राजनीति में दाखिल हुए, जब बच्चों के खेलने की उम्र होती है। 13 साल की उम्र में उन्होंने राजनीतिक करियर शुरू किया। दरअसल राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था। सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे। 1956 में शादी के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया।18 साल की उम्र में वे पढ़ाई के लिए लाहौर गए। 23 साल की उम्र में उनका विवाह विमला देवी से हुआ। उसके बाद वे गांव में रहने लगे। उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला।1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ों की सुरक्षा पर केंद्रित किया।
1974 में चमोली में पर्यावरण संरक्षण के लिए चले ‘चिपको आंदोलन’ ने उन्हें बडी़ प्रसिद्धि दिलायी।।1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की। उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश दिया।
बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी।