संस्कृत के लिए बड़ी उम्मीद है राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020: प्रो. त्रिपाठी
देहरादूनः ’’देश में पहली बार भारत के परिवेश पर केंद्रित शिक्षा नीति बनी है। यह हमारी ज्ञान परंपरा को प्रतिबिम्बित करती है। इसका आधार मनोवैज्ञानिक है। यह हमारी आर्थिकी को संवारेगी, भारत को समृद्ध बनाएगी। भारत ज्ञान का विशिष्ट केंद्र बनेगा। भारतीय भाषाओं का संरक्षण करने वाली यह नीति विशेष तौर पर संस्कृत के लिहाज से बेहतरीन है।’’
उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. देवीप्रसाद त्रिपाठी का यह कहना है राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के विषय में। इसे छात्रों का सर्वांगीण-सर्वपक्षीय विकास करने वाली नीति बताते हुए वे कहते हैं कि इसके अस्तित्व में आने से रोजगार के द्वार खुलेंगे।
प्रो. त्रिपाठी के अनुसार इस नीति में नींव से शिखर तक हर चीज का बारीकी से ध्यान रखा गया है। बच्चे की कमर से बस्ते का बोझ कम हो जाएगा और पहले की अपेक्षा उसके ज्ञान में वृद्धि होगी। उसकी प्रतिभा पहले की अपेक्षा अधिक निखरेगी। वह ज्ञान का भंडार और रोजगार का सर्जक होगा। उसके पास विकल्पों की भरमार होगी। क्रेडिट सिस्टम के कारण उसके समय का सदुपयोग होगा। वह जब चाहे काॅलेज-यूनिवर्सिटी छोड़कर अपनी आवश्यकतानुसार नौकरी कर सकता है और फिर जब मर्जी वापस आकर अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर सकता है। इस कारण हमें ड्राॅप आउट जैसी बड़ी समस्या से भी निजात मिल जाएगी और छात्र की मजबूरियां उसके शिक्षा के लक्ष्य में बाधा उत्पन्न नहीं कर पाएंगी। शिक्षा ’इजी गोइंग’ हो जाएगी। बस्ते का बोझ कम होने साथ ही शिक्षा की जटिलता भी समाप्त हो जाएगी। साधारण तरीके से बच्चा बेहतर से बेहतर सीख पाएगा।
कुलपित प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी के मुताबिक इस नीति में संस्कृत को बड़ा महत्त्व दिया गया है। छात्रों का रुझान संस्कृत की ओर बढ़ेगा। संस्कृत के विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में छात्र संख्या बढ़ेगी और इस क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी। वर्षों से उपेक्षित पड़ी इस देववाणी और हमारी प्राचीन भाषा के उत्थान की दृष्टि से यह बड़ी बात है। शिक्षा शास्त्र यानी बीएड का स्वरूप परिवर्तित किए जाने के बाद उसमें भी विकल्प प्रदान किए गए हैं। बीएड चार, दो और एक साल का हो जाएगा। अध्यापन में जाने का लक्ष्य निर्धारित करने और विजन क्लीयर होने पर छात्र बारहवीं के बाद सीधे बीएड में प्रवेश कर सकता है। वह चार साल तक का बीएड कोर्स कर सकेगा। यह उसका स्नातक के साथ बीएड हो जाएगा। कोई छात्र ग्रेजुएशन के बाद बीएड करता है तो उसे बीएड में दो साल खर्च करने पड़ेंगे। पीजी के बाद बीएड एक साल का हो जाएगा। अर्थात् छात्रों के समय का पूरा-पूरा ध्यान इस नीति में रखा गया है। शिक्षा ग्रहण करने के लिए ऐसी सुविधाएं और लचीलापन पहले कहां था? भाषा और भारतीयता के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह नीति प्रशंसनीय है। इसमें भाषाओं की रक्षा की गई है। इससे बच्चे डायनेमिक होंगे। विदेश से बच्चे हमारे शिक्षण संस्थानों में विद्या अध्ययन के लिए आएंगे। इस नीति की एक विशेषता है कि बच्चों पर कुछ थोपा नहीं गया है। साधारण बच्चा भी आगे बढ़ेगा और मेधावी और अधिक मेधावी बन जाएगा। शिक्षा के क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन करने के बाद अस्तित्व में आयी नीति भारत देश की एक धरोहर होगी। अपने परिवेश अपनी संस्कृति को आत्मसात करते हुए बच्चे को विकास की राह पर ले जाया गया है। विश्व के अनेक देशों में शिक्षा पर लगभग ऐसा ही काम चल रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि इस नीति में कुछ तो बात है। छात्र हित, समाज हित, राष्ट्रहित में हमारे देश में यदि ऐसा ऐतिहासिक कार्य हो रहा है तो हम सभी का दायित्व है कि हम सहर्ष स्वीकार कर इसे लागू करने में पूरा सहयोग दें।
(डाॅ. वीरेंद्र बर्त्वाल)