आयुष छात्रों को देनी होगी बढ़ी हुई फीस

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हाईकोर्ट की डबल बेंच ने पुराना फैसला पलटा, 2015 में निर्धारित हुआ था शुल्क

देहरादून। प्रदेश के आयुष छात्रों को 2015 से बढ़ा हुआ शुल्क ही देना होगा। यह शुल्क 2015 में सरकार ने 2 लाख 15 हजार सालाना निर्धारित किया था। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले को पलटते हुए यह व्यवस्था दी है।
2015 में तत्कालीन सरकार ने आयुष काॅलेजों और विश्वविद्यालयों की फीस अनंतिम रूप में बढ़ाते हुए इसे 2.15 लाख सालाना किया था। यूनिवर्सिटी ने यह तय किया गया था कि जो पुराने छात्र हैं, उनसे भी यह फीस ली जा सकती है। इस पर छात्रों ने यह कहकर विरोध कर दिया कि फीस निर्धारण का अधिकार किसी समिति के पास है, इसलिए सरकार ऐसा नहीं कर सकती। छात्र कोर्ट चले गए और सिंगल बेंच ने फैसला देते हुए उक्त निर्णय पर स्टे के आदेश दे दिए तथा पुरानी से फीस 80 हजार से अधिक लिए गए शुल्क को वापस करने का आदेश दिया गया। फिर आयुर्वेदिक काॅलेजों का संगठन अपील में गया। मामला डबल बेंच में गया। उसने भी वही फाॅलो किया। फिर वे स्पेशल अपील में गए। काॅलेज वालों के तर्क थे कि 2007 से निर्धारित फीस से कैसे हमारे खर्चे चलेंगे? हमें बच्चों को सुविधाएं और शिक्षकों को वेतन भी देना होता है। हमने बढ़ी हुई फीस के आधार पर सुविधाएं देना और वेतन देना आरंभ कर दिया था। काॅलेजों का भी विकास कर दिया है। इधर, फीस कमेटी ने बढ़ी हुई फीस को 2019 से मान्य कर दिया, लेकिन पुराने बैचों के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया। काॅलेज संगठन अपीलेंट आॅथाॅरिटी में गया। वहां सुनवाई के बाद बढ़ी हुई फीस को 2015 से मान्य कर दिया गया। इस बीच संगठन की स्पेशल अपील भी स्वीकृत हो गई।
अभी इस संबंध मंे डबल बेंच का निर्णय आया है, उसमें कहा गया है कि इस संबंध में पहले की सिंगल और डबल बेंच के निर्णयों को स्टे किया जाता है। अर्थात् जब तक उक्त संबंध में कोई अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक वहीं पुरानी फीस 2.15 लाख ही ली जाती रहेगी और कोई फीस वापस नहीं की जाएगी। इस डबल बेंच में न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और रवि मालीमथ शामिल थे।

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