साइलेंट किलर की भूमिका में त्रिवेन्द्र और कौशिक के नाम चर्चाओं में
देहरादून। मंच पर राष्ट्रवाद की सीख और अबकी बार 60 पार जैसे नारे तो राज्य के लिए डबल इंजन की उपयोगिता तथा मोदी के द्वारा दिए गए बजट का बखान देखकर तो यह लगता है कि भाजपा राज्य में प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने जा रही है। लेकिन मंच से अलग पर्दे के पीछे की अलग हकीकत भी है। जिस तरह से भाजपा मुख्यालय में प्रत्याशी शिकायतें और हार के डर से भीतरघात को लेकर खुलेआम आरोप प्रत्यारोप लगा रहे है उसने पार्टी को जरूर असहज कर दिया है।
2 जनपदों हरिद्वार और देहरादून की स्तिथि को देखकर स्पष्ट अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाली तस्वीर क्या होगी। जनपद देहरादून की धर्मपुर सीट पर भाजपा के बागी वीर सिंह पवांर मजबूती से विनोद चमोली की राह में रोड़ा बन गये। आरोप है कि पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के इशारे पर ही वह मैदान में डटे रहे। वहीं लंबे समय से त्रिवेंद्र के सारथी रहे और कुछ समय पहले साथ छूटा तो पूर्व जिलाध्यक्ष और वरिष्ठ नेता जितेंद्र सिंह भी भाजपा और कांग्रेस के बीच आ गये। वहीं त्रिवेंद्र के ओएसडी रहे धीरेन्द्र पंवार भी भाजपा प्रत्याशी बृजभूषण गैरोला के लिए कांटे बोते रहे। अपनी विधानसभा क्षेत्र से त्रिवेन्द्र बगावत नहीं रोक पाये यह उन पर सवाल हमेशा रहेगा। रायपुर में उनके पूर्व प्रतिद्वन्दी उमेश शर्मा काऊ मैदान में तो थे,लेकिन भाजपा संगठन कांग्रेस के लिए आखिरी क्षणों तक रास्ता तलाशता रहा। आरोप है कि त्रिवेंद्र के अधिकांश समर्थक रायपुर में थे और वहां पर कांग्रेस प्रत्याशी हीरा सिंह बिष्ट के लिए कार्य करते रहे। जिलध्यक्ष से लेकर मंडल तक भाजपा का झंडा उठाने के लिए लोग नहीं दिखें।वहाँ पर उमेश शर्मा का निजी नेट्वर्क भाजपा के सिम्बल पर जुझता दिखा। ऋषिकेश में त्रिवेंद्र समर्थक मेयर अनीता ममगांई चुनाव में नदारद रही तो संदीप गुप्ता और कृष्ण कुमार गुप्ता भी विपक्षी प्रत्याशियों के पक्ष में अंदरखाने गोटिया विछाते दिखें। धनौल्टी में त्रिवेंद्र के परम शिष्य और पिछली बार टिकट न मिलने के बाद भी शांत रहने वाले महावीर रांगड़ इस बार निर्दलीय उतर गये। त्रिवेंद्र के कार्यकाल में उनको मजबूत विभाग जीएमवीएन का अध्यक्ष बनाया गया था। कैंट सीट पर भी यही स्थिति रही। दिनेश रावत भाजपा के बागी रहे तो अधिकतर टिकट के दावेदारों के द्वारा भीतरघात के आरोप प्रत्याशी के द्वारा लगाए गये है।
हरिद्वार जनपद में तो प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक पर प्रत्यशियों को ही हराने के आरोप लगे है। लक्सर विधायक संजय गुप्ता खुले तौर पर कौशिक को गद्दार कह चुके हैं। उनका कहना है कि कौशिक के द्वारा नमित किये गये प्रतिनिधि उनके खिलाफ बसपा के लिए कार्य करने लगे और निर्दलीय भी लड़े। हरिद्वार ग्रामीण से स्वामी यतिश्वरानंद हाईकमान को पत्र भेजकर भीतरघात के बारे में अपनी पीड़ा से अवगत करा चुके हैं। बताया जाता है कि कौशिक के निकटस्थ नरेश शर्मा निर्दलीय लड़े। ज्वालापुर से गवर्नर के ओएसडी रहे देवेंद्र प्रधान ने मुश्किल खड़ी कर दी। रानीपुर से उज्जवल पंडित तथा राजीव शर्मा युवा मोर्चा के पदाधिकारी रहे है,लेकिन उन्हें रोकने के बजाय चुनाव लड़ने को प्रेरित किया गया। झबरेड़ा में नमित पार्षद और टिकट कटने से नाराज देशराज भी राजपाल के खिलाफ कार्य करते रहे। रूड़की मे नितिन शर्मा चुनाव लड़े और टारगेट ब्राह्मण वोट पर सेंध लगाकर बत्रा को कमज़ोर करना था। भगवानपुर में सुबोध राकेश को फायदा पहुचाने के लिए कभी प्रदेश अध्यक्ष कौशिक के चुनाव सयोंजक रहे नेता भी मैदान में उतर गये और पार्टी के खिलाफ कार्य किया।
पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक की गज़ब कि केमिस्ट्री का ही असर रहा कि साइलेंट तरीके से प्रत्याशियों को ठिकाने लगाने के लिए कार्य भी किया और उस पर समय से हो हल्ला भी नहीं हो पाया,लेकिन अब दबी राख से चिंगारी उठने लगी है। त्रिवेंद्र और हरीश रावत की जुगलबन्दी को लेकर चर्चा यहाँ तक है कि टिहरी में ओमगोपाल को टिकट न मिलने पर उनकी शिफ्टिंग कांग्रेस में तो धन सिंह भी कांग्रेस का सिम्बल लेने में सफल रहे।
अब 10 मार्च को नतीजे घोषित होंगे और नतीजों को लेकर तरह तरह के कयास हैं, लेकिन जिस तरह से मदन कौशिक और त्रिवेंद्र की जुगलबन्दी साइलेंट किलर की तरह से चर्चाओं में है उससे तय माना जा रहा है कि मनचाहे परिणाम न आने पर पार्टी में घमासान हो सकता है।