निदेशक के अपहरण की आशंका, मंत्री की पुलिस से गुहार

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मंत्री ने पुलिस से लगाई गुहार-मेरे निदेशक को ढूंढ़ लाओ

राज्यमंत्री रेखा आर्या को घपले में अपने निदेशक की संलिप्तता का अंदेशा

देहरादूनः उत्तराखंड की नौकरशाही में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। या यूं कहें कि नौकरशाही की स्थिति हास्यास्पद बन गयी है। अफसरों को जिम्मेदारी से कोई मतलब नहीं और मंत्रियों का कोई भय नहीं है। अपने ही विभाग के मंत्री को उन्होंने तवज्जो देना बंद कर दिया है। इसका अंदाजा इसीसे लगाया जा सकता है कि महिला कल्याण एवं बाल विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रेखा आर्या को अपने विभाग के निदेशक की गुमशुदगी के बारे में एसएसपी को पत्र भेजना पड़ा है।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही आरोप लगते रहे हैं कि यहां कई आला अफसर मनमानी करते हैं। उन्हें राज्य के विकास और समस्याओं से अपेक्षित सरोकार नहीं है। मंत्री और विधायकों की आम शिकायत रहती है कि अधिकारी उनकी सुनते नहीं है। इस बार तो हद ही हो गयी है। निदेशक महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास पी. षणमुगम अचानक ’गुम’ हो गए हैं। वे अपनी मंत्री के संपर्क में नहीं हैं। इस पर महिला कल्याण एवं बाल विकास, पशुपालन, भेड़ एवं बकरी पालन, चारा एवं चारागाह विकास, मत्य विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रेखा आर्या खासी परेशान और चिंतित हो गई हैं। पी.षणमुगम का 20 सितंबर से फोन बंद बताया गया है। अनेक प्रयासों के बाद भी जब उनसे मंत्री का संपर्क नहीं हो पाया तो उनके निजी सचिव ने श्री षणमुगम के निजी सचिव से इस संबंध में संपर्क किया, लेकिन फिर भी उनका पता नहीं चल पाया।
इस संबंध में श्रीमती आर्या ने देहरादून के डीआईजी और एसएसपी को पत्र लिख उक्त निदेशक को ढूंढ़ने को कहा है। पत्र में मंत्री ने आशंका जताई है कि या तो श्री षणमुगम का अपहरण हो गया है और या फिर वे स्वतः ही भूमिगत हो गए हैं। मंत्री ने लिखा है कि वर्तमान में महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग में मानव संसाधन आपूर्ति हेतु टेंडर प्रक्रिया चल रही थी। जिसमें घोर अनियमितता एवं धांधली होने की आशंका है। इसमें संलिप्तता के कारण अब श्री षणमुगम इससे बचना चाहते होंगे, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो सकते।
राज्यमंत्री श्रीमती आर्या ने पुलिस को लिखे पत्र में कहा कि श्री षणमुगम को सकुशल ढूंढ कर लाया जाए और उन्हें यह भी सूचना दी जाए कि मंत्री ने उन्हें तलब किया है।
बहरहाल, राज्य में किसी अधिकारी की लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना हरकत के खिलाफ किसी राज्यमंत्री का ऐसा पहला पत्र है, जो यह उजागर करने के लिए काफी है कि यहां की नौकरशाही किस कदर बेलगाम होकर मनमानी पर उतारू है। जिस नौकरशाही को विधायिका का भी भय नहीं रह गया है। यह स्थिति न केवल लोकतंत्र, बल्कि बदतर हालत में पहुंच चुके उत्तराखंड के लिए बड़ी चिंताजनक है।

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