निशंक की कामयाबी का आइना है राष्ट्रीय शिक्षा नीति

कोविड काल में शिक्षण व्यवस्था को पटरी पर बनाए रखा

देहरादूनः डाॅ0 रमेश पोखरियाल निशंक की पहचान एक दूरदर्शी राजनेता की है। वे हर योजना को पारखी निगाहों से देखते हैं। उसके गुण-दोष का गहन विश्लेषण करते हैं। उनके विजन के बेहतरीन दूरगामी परिणाम होते हैं। केंद्रीय शिक्षा मंत्री रहते राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को प्रस्तुत करना उनकी बड़ी कामयाबी के रूप में गिना जा सकता है। घिसे-पिटे ढर्रे पर चल रही भारत की शिक्षा व्यवस्था को नया आयाम देने वाली इस नीति से भारत की विश्व में अलग पहचान बनने जा रही है। यह नीति भारत को उसका खोया गौरवमयी स्वरूप दिलाने का सुंदर डाॅक्यूमेंट है।
’’दृढ़ संकल्प के आगे तो दुनिया भी हारी है,
निज लक्ष्य पाने हेतु मेरा संघर्ष जारी है।’’
डाॅ.रमेश पोखरियाल ’निशंक’ की 2009 में लिखी कविता की उपरोक्त पंक्तियां उनकी राजनीतिक सफलता की मूल मानी जा सकती हैं। अध्यापक से विधायक, कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री और इसके बाद भारत सरकार में शिक्षा मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे डाॅ0 निशंक को उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति और अथक परिश्रम ने कामयाबी दिलायी है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री रहते उन्होंने नई शिक्षा नीति को प्रस्तुत कर न केवल सुखद और समृद्ध भारत की नींव रखने में अहम भूमिका निभायी, अपितु अन्य देशों का ध्यान भी भारत की ओर खींचा है। यह भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं है कि उन्होंने कोविड काल में शिक्षण व्यवस्था को बेपटरी नहीं होने दिया और जेईई, नीट, नेट जैसी बड़ी प्रतियोगिताओं को सुचारु संपन्न कराया।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री के रूप में कम अवधि में डाॅ0 रमेश पोखरियाल निशंक के खाते में दर्ज उपलब्धियां कम नहीं हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को प्रस्तुत कर उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन का अप्रत्याशित कार्य किया है। भारत के उज्ज्वल भविष्य की नींव इस नीति में आत्मनिर्भरता है। यह जाॅबओरिएंटेड, संस्कारयुक्त और मानव मूल्ययुक्त शिक्षा देगी, जिसकी आज भारत को नितांत आवश्यकता है। हमें हमारी जड़ों को जोड़कर आसमान की ओर परवाज भरने वाली इस शिक्षा में बच्चों को लिखने पढ़ने की स्वतंत्रता और भारतीय भाषाओं का संरक्षण किया गया है।
खास बात यह रही कि यह नीति एक-दो व्यक्तियों के विचार नहीं हैं। इसमें करोड़ों भारतीयों की अवधारणा, संकल्पना एवं विचार निहित हैं। इसके निर्माण से पहले करोड़ों की संख्या में प्रतिनिधियों, विद्यार्थियों, अध्यापकों, विद्वानों और विशेषज्ञों के विचार और सुझाव लिए गए हैं। छात्रों पर से बस्ते का बोझ कम करने, युवाओं को रोजगार सर्जक बनाने और शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने जैसी अनेक विशेषताओं से युक्त इस नीति की यह बड़ी खूबी कही जा सकती है कि इस में अभी तक नहीं ंके बराबर असहमति के सुर उठे हैं। अनेक सुझावों, परिचर्चाओं के साथ ही गहन अध्ययन, नफा-नुकसान के गंभीर विश्लेषण के बाद अस्तित्व में आयी इस शिक्षा नीति को लागू करना यद्यपि एक बड़ी चुनौती है, लेकिन नीति के ढांचे को देखकर इतना तय है कि यह देश की दिशा और दशा को बदलने में कामयाब रहेगी।
छह सालों से कागजों में कैद रही इस नीति को डाॅ0 निशंक सरकार के सामने लाने में कामयाब रहे। इसके लागू होने से भारतीय शिक्षा व्यवस्था नए स्वरूप में आ जाएगी, जिसकी देश को बड़ी आवश्यकता थी। अब इसे लागू किया जाना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी यह नीति रास आयी। वे इसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाए हैं। एक भारत, श्रेष्ठ भारत, समृद्ध भारत जैसी अनेक संकल्पनाओं से बहुरंगी बनी इस नीति में भारतीयता का दर्शन समाहित है। यह नीति ज्ञान का ऐसा समावेश है, जिसमें विद्यार्थी नौकरी पैदा करने वाला बनेगा। बुनियाद से सीढ़ी-दर-सीढ़ी वह ज्ञान के विभिन्न सोपानों को पार करता हुआ शिखर पर पहुंचकर अपने विषय का एक्सपर्ट बन सकेगा। प्राचीन भारत की तरह अध्यापक की गरिमा की रक्षा होगी और उसे गुरु का वह सम्मान प्राप्त होगा, जिसके लिए भारतीय संस्कृति की पूरे विश्व में विशिष्ट पहचान रही है। भारतीय शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण की पहल इसमें महत्त्वपूर्ण है। इससे हमारी प्रतिभा और पैसा दोनों भारत में ही रह पाएंगे।
यदि नीति में उल्लिखित यह बात लागू होती है कि ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों में शिक्षकों के लिए आवास बनाए जाएंगे और स्कूलों को पुस्तकों से समृद्ध किया जाएगा तो यह गांवों को संवारने के लिए बड़ी बात हो सकती है। विद्यार्थियों को कम उम्र में ’सही को करने’ का महत्त्व सिखाया जाना भी कम बड़ी बात नहीं है। सभी कार्यों में नैतिक आचरण अपनाने में सक्षम बनाने पर जोर दिया जाएगा। विद्यार्थियों में बुनियादी मानवीय और संवैधानिक मूल्य विकसित किए जाएंगे। उनमें त्याग, सहिष्णुता, निष्काम कर्म, धैर्य, क्षमा, सहनशीलता, समानता और बंधुत्व के गुण और भावनाएं विकसित की जाएंगी।
इस नीति का लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है तथा इसमें प्रत्येक व्यक्ति की रचनात्मक क्षमताओं के विकास पर विशेष जोर दिया गया है। वंचित और हाशिये पर रह रहे समुदायों के बच्चों को उनका वाजिब हक मिलने से देश में समानता आना लाजिमी है।
कोविड काल में लगभग एक साल तक पूरी शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर बनाए रखना डाॅ0 निशंक की दूसरी बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। आॅनलाइन पढ़ाई के साथ ही इस काल में बच्चों की मानसिक समस्याओं के निराकरण में ’मनोदर्पण’ जैसे कार्यक्रमों ने बच्चों की बड़ी सहायता की।

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