आग बुझाने वाले हरकू भैजी को नमस्कार

आदरणीय डाॅ0 हरकसिंह रावत भैजी! सादर सेवा सौंळी। आशा करता हूं कि जंगलों में लगी आग बुझाने के बाद आप सुरक्षित और कुशल-मंगल होंगे। सर्वप्रथम आत्मरक्षा करना बाद में अन्य कार्य हैं।

भैजी! भोले-भाले पहाड़ियों को अपनी ओर आकर्षित करने की कला कोई आपसे सीखे। कसम से कल रात को जब आपको जंगल की आग बुझाते देखा तो मेरा रोम-रोम पुलकित हो गया। मैं भगवान से प्रार्थना करने लगा कि पूरे देश के सभी राज्यों को ऐसे वन मंत्री मिलें, जो सुंदर-सा महंगा कुर्ता पायजामा पहनकर, एक नाजुक टहनी लेकर और साथ में बड़े कैमराधारकों को लेकर सड़क किनारे रात को मौका ताककर आग बुझाने जुट जाए। भैजी, जंगल उत्तराखंड की प्रमुख संपदा है। हर साल जंगलों में व्यापक स्तर पर आग लगती है और बेशकीमती लकड़ी तथा जीव-जंत ुजल जाते हैं। आप चार साल से वन महकमा देख रहे हैं। उत्तराखंड का यह अदना सा नागरिक जानना चाहता है कि आपने इन चार सालों में क्या किया, जो पांचवें साल आपको खुद आग बुझाने सड़क किनारे जाना पड़ा?
भैजी आज तक समझ नहीं आया कि आपका विभाग हर वगत नींद में क्यों रहता है? गांव में जब शादी जैसे आयोजन की लकड़ी के लिए कोई एक सूखा पेड़ काटता है तो वहां पतरोल गुड़ पर मक्खी की तरह हाजिर हो जाता है, लेकिन जब जंगल के जंगल स्वाह हो जाते हैं, जब आपके अफसर कहां सो रहे होते हैं?
इन चार सालों में आपने जंगलों को बचाने के लिए कोई नई पहल की हो तो इस नाचीज से भी साझा करें, ताकि यह नाचीज उसे अन्य भाई-बंधुओं के बीच साझा कर सके।
भैजी एक बात समझ नहीं आई कि जब आप अचानक रात के अंधेरे में रुद्रप्रयाग से श्रीनगर लौटते हुए जंगल की आग बुझाने निकले तो ये दो कैमरामैन आपको किस पेड़ के नीचे बैठे मिल गए? आजकल तो शादियों का सीजन भी नहीं कि आप यह कह सको कि यह बारात में जा रखे थे। दिदा आप ऐसी नाजुक टहनी से आग बुझा रहे हो, जिससे कभी हम मुख पर लगी मक्खियां हंकाया करते थे। यदि आप सच्चे पहाड़ी हो तो आपको पता होगा कि जंगल की आग बुझाने का यह कोई कारगर तरीका नहीं है।
भैजी! आप पहाड़ के रहने वाले हो, आपको पता होना चाहिए कि यहां के लोगों की जंगलों के प्रति आस्था रही और वे उसे समय-समय पर बचाते भी रहे हैं, लेकिन विभाग जंगलों को बचाने में ग्रामीणों की मदद लेने में हद दर्जे की कंजूसी करता है। उसे स्थानीय लोगों को जागरूक और प्रेरित करना चाहिए कि वे जंगलों को बचाने में आगे आएं।
भैजी! सुना है आप आंसू बहाने और कसम खाने में माहिर हो, आप इसके लिए भी माहिर हो कि जिस भी क्षेत्र में जाते हो, वहां चुनाव जीत जाते हो, ’अपनों’ को एडजस्ट करने में आप सारे नियमों की बखिया उधेड़ देते हो, आपकी सरपरस्ती में एक महकमे में भ्रष्टाचार की बू आयी है। आप पर प्रदेश सरकार में अस्थिरता उत्पन्न करने के आरोप भी लगते हैं। पिछली कांग्रेस सरकार में ’25-25’ करोड़ के मामले के महानायकों में एक आप भी थे। सियासत में आपकी गाथाएं गाड-गधेरो, धार-डांडों तक सुनायी देती हैं। एक सवाल पूछना चाहता हूं कि आपकी इस राज्य के लिए आज तक क्या खास उपलब्धि रही, जिसे यह अभागा राज्य हरकसिंह के नाम पर पेटेंट करे। भला हो गढ़वाल विश्वविद्यालय का कि आपको प्रोफेसरी का वेतन देना बंद कर दिया, वरना आप न जाने कितने वर्षों तक विश्वविद्यालय से फ्री की पगार डकारते रहते।
भैजी! एक बात और बताइए। आज उत्तराखंड के जंगलों में आग भड़के तीन हफ्ते से अधिक हो गए हैं, लेकिन आपने इसे रोकने के लिए क्या विशेष उपाय किए? कितने क्षेत्रों का आपने दौरा किया, कितनी बैठकें कीं, कितनी बार आपने मुख्यमंत्री से संपर्क साधा? भाईजी, मुझे तो लगता है कि आपकी नजर केवल मलाईदार महकमे और कुर्सी पर ही टिकी रहती है। आप कभी धारी देवी में मंत्रालय न लेने की कसम खाते हैं तो कभी 2022 में चुनाव न लड़ने का ऐलान करते हैं। जैसे आपने धारी देवी की कसम तोड़ी, वैसे ही चुनाव न लड़ने का वचन तोड़कर अपनी भद्द न पिटवा लेना।
याद रखना भैजी! यह धरती आस्थ और श्रद्धा की धरती है। यहां भटकताळ भी मारी जाती है। यहां हंकार-जैकार भी लगती है। यहां की भोली-भाली प्रजा को धोखा दोगे तो परिणाम बुरे होंगे। यहां वृक्षों के नीचे देवताओं का वास माना गया है। आपने उन पेड़ों को बचाने के लिए ईमानदारी और दिल से काम नहीं किया है। आपके आलसी कर्मचारियों और अधिकारियों के दिमाग में अभी तक इन जंगलों को बचाने के लिए कोई योजना क्यों नहीं आई? यह सवाल न केवल वन महकमे की लुंज-पुंज कार्यशैली को ललकारते हैं, बल्कि वनों के प्रति आपकी लापरवाही को भी उजागर करते हैं। जंगल के प्रति आपका बनावटी प्रेम देखकर कल रात से मुझसे हंसी आ रही है और मिथ्या प्रचार के आपके इस नायाब तरीके पर मुझे तरस आ रहा है। सवाल यह भी है कि यदि आपने मंत्री बनकर आग ही बुझानी है तो आपके महकमे का यह भारी-भरकम अमला बारात में जाने के लिए रखा हुआ है क्या? वैसे सुना है कि आग तो कोटद्वार की जनता के दिलों में भी बहुत लगी है। बेहतर होता, पहले वहीं आग बुझा लेते।
उम्मीद करता हूं कि इस चिट्ठी को पढ़ने के बाद आप अपनी स्वाभाविकता, निष्ठा, ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता के मार्ग पर आओगे, जिसकी आपने शपथ ली है। और हां, यह फर्जी ठाकुरपना भी छोड़ देना,अधिक मौकापरस्ती ठीक नहीं।
गलती-सलती माफ करना।

भुला बसंतू लाल
कमेडा़खाल
पौडी़ गढ़वाल

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