कहीं त्रिवेन्द्र की विदाई की बेला तो नहीं आ गयी?

भाजपा हाईकमान ने भेजे दो केंद्रीय पर्यवेक्षक, राज्य की सियासी हलचल तेज

सरकार की लापरवाह कार्यशैली बनी हाईकमान की चिंता का कारण

अनेक मुद्दों पर घिर रही सरकार, विधानसभा चुनावों को लेकर हाईकमान चिंतित

देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाए जाने की अटकलें एक बार फिर तेज हो गयी हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तराखंड प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह के अचानक देहरादून आने के पीछे कयास लगाए जा रहे हैं उन्होंने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की टोह लेकर त्रिवेंद्र रावत की छवि के बारे में जानकारी हासिल की है। त्रिवेंद्र रावत के हाथ से राज्य की बागडोर छीनने के पीछे हाईकमान के पास अनेक कारण और तथ्य हैं।
उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। समय निकट आने के साथ-साथ भाजपा हाईकमान की चिंता भी बढ़ने लगी है। पार्टी के पास ऐसा कुछ खास नहीं है, जिससे वह मतादाताओं से 2022 में अपने उम्मीदवारों के लिए वोट मांग सके, क्योंकि सरकार चार साल कार्यों से जनता में भारी असंतोष है। बहरहाल, त्रिवेंद्र सरकार की छवि पर पर इन मसलों के कारण बट्टा लग चुका है-

बढ़ती बेरोजगारी

उत्तराखंड में सबसे बड़ी समस्या रोजगार की है। कोरोना काल में शहरों से अपने घरों को लौटे प्रवासियों को भी सरकार राज्य में रोजगार मुहैया करवाकर यहां नहीं रोक सकी है। लंबे समय से यहां भर्तियां नहीं हो पायी हैं। 2017 में यहां त्रिवेंद्र सरकार बनी थी, तब से यहां बेरोजगारी की दर तीन गुना से अधिक हो चुकी है। 2019 जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में यह दर 4.2 थी। उच्चतर शिक्षा क्षेत्र में भी रोजगार की स्थिति बहुत बुरी है। राज्य में बाहर के उद्योगपतियों को उद्योग स्थापित करने की त्रिवेंद्र सरकार की कवायद भी टांय-टायं फिस्स ही रही। बेरोजगारी के कारण पलायन तेजी से बढ़ रहा है और गांव के गांव खाली हो रहे हैं। परिणामस्वरूप छात्र संख्या कम होने के कारण सरकार को कई प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय बंद करने पड़ रहे हैं।

महिलाओं पर लाठीचार्ज

घाट में सड़क चैड़ीकरण की मांग पर आंदोलन कर रहे लोगों खासकर महिलाओं पर दिवाली खाल में लाठीचार्ज किए जाने से त्रिवेंद्र सरकार की छवि पर बट्टा लगा है। मूलभूत समस्या के निस्तारण की मांग पर की गयी इस बर्बर कार्रवाई के बाद सरकार को न केवल सोशल मीडिया, बल्कि राजनीतिक क्षेत्रों और आम जनता का भी कोपभाजन होना पड़ा। आक्रोशित लोगों ने सरकार का पुतला दहन तक किया। इस घटना में डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों को चोटें आयी थीं। हालांकि सरकार ने इसमें अपना बचाव करने का असफल प्रयास भी किया।

गर्भवती महिलाओं की मौत

चिकित्सा व्यवस्था अपनी बदतर हालत पर आंसू बहा रही है। दो-तीन महीने बाद एक खबर जरूर आ जाती है कि समय पर इलाज न मिलने से गर्भवती महिला ने दम तोड़ा। ये खबरें सरकार की संवेदनहीनता दर्शाने के लिए काफी हैं। हाल ही में ग्राम-बेस्टी, पुरोला, उत्तरकाशी की 30 वर्षीया रेक्सीना भी सरकार की इसी संवेदनहीनता का शिकार होकर अकाल मौत का शिकार हो गयी। गर्भवती रेक्सीना को पुरोला और नौगांव के सरकारी अस्पतालों से देहरादून ले जायी जा रही थी कि उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। इसी प्रकार विगत माह किसाला, बड़कोट की 21 वर्षीया गर्भवती उर्मिला का जीवन भी सरकार की अनदेखी की भेंट चढ़ गया था। यह राज्य की चिकित्सा दुर्दशा बयां करने के लिए काफी है कि नेता अपना इलाज कराने राज्य के बाहर बड़े अस्पतालों में जा रहे हैं और गरीब मरीज तथा खासकर गर्भवती महिलाएं सड़कों पर दम तोड़ रही हैं।
सन्त समाज में आक्रोश

इधर, बताया जाता है कि हरिद्वार महाकुंभ में अव्यवस्थाओं को लेकर सन्त समाज प्रदेश सरकार से भारी नाराज है। सन्तों का मानना है कि हर महाकुंभ में अलग-अलग अखाड़ों के लिए अस्थायी नगर बसाए जाते थे, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं किया गया। इसके अलावा भी अनेक असुविधाओं का सामना संतों और श्रद्धालुओं को करना पड़ रहा है।

उद्योग सलाहकार की मनी लांड्रिंग

भले ही सरकार खुद को ’जीरो टाॅलरेंस’ सिद्धांत पर चलने का दावा करती हो, लेकिन भ्रष्टाचार से सरकार अछूती नहीं है। उसे बेदाग कहना उचित नहीं नहीं होगा। ’गुप्ता जी’ का वीडियो मामला हो या सीएम के उद्योग सलाहकार केएस पंवार की मनी लांड्रिंग का मामला हो, त्रिवेंद्र सरकार का इस पर चुप्पी साधे रखना ’दाल में काला’ होने का संकेत देता है।

सलाहकारों की फौज

अनावश्यक सलाहकारों की फौज खड़ी कर फिजूलखर्ची को बढ़ावा दे रहे त्रिवेंद्र के सलाहकारों की राज्य के लिए अभी तक ऐसी कोई उपलब्धि नहीं है, जिसे उल्लेखनीय कहा जाए। राज्य में शिक्षा की हालत बद से बदतर हो रही है और औद्योगिक विकास न होने से रोजगार नहीं मिल पा रहा है, जबकि त्रिवेंद्र रावत ने एक नामी स्कूल के एमडी को शिक्षा सलाहकार और विवादित उद्यमी को अपना उद्योग सलाहकार बनाया हुआ है। इसी प्रकार सरकार में ओएसडी की लंबी फौज बतायी जाती है, जिन्हें आईएएस अधिकारियों के समान वेतन दिया जा रहा है। इस पर राज्य के युवाओं में भारी आक्रोश है।
टैक्स पर कुछ लोगों को छूट
लच्छीवाला टोल बैरियर पर केवल डोईवाला के लोगों को टैक्स की छूट दिए जाने का समाज में गलत संदेश गया है। इसकी सोशल मीडिया समेत क्षेत्र में तीखी आलोचना हुई है। लोगों का मानना है कि मुख्यमंत्री ने अपने विधानसभा क्षेत्र के मद्देनजर यह फैसला लिया है। देहरादून शहर और डोईवाला के आसपास के क्षेत्र लोग सरकार के इस निर्णय को भेदभाव वाला फैसला बता रहे हैं।
बहरहाल, भाजपा हाईकमान द्वारा अचानक दो पर्यवेक्षक भेजे जाने से राज्य की सियासी हलचल अचानक तेज हो गयी है। हाईकमान इसलिए भी चिंतित है कि विधानसभा चुनाव आने वाले हैं और आम आदमी पार्टी राज्य में सक्रिय होकर कार्य करने लगी है। वह बेरोजगारी, चिकित्सा समस्या और लाठीचार्ज जैसे ज्वलंत मुद्दे लेकर जनता के बीच जा रही है। उधर, उत्तराखंड क्रांति दल भी सक्रिय हो गयी है। छोटे दलों की सक्रियता देख भाजपा चिंतित है। सरकार के पास इन दलों द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों की काट नही है, इसलिए वह कमजोर पड़ती जा रही है। इस स्थिति में हाईकमान चिंतित है। दो केंद्रीय पर्यवेक्षकों को यहां भेजने की कवायद के केंद्र में यही चिंता है। इस चिंता का निराकरण त्रिवेंद्र रावत की विदाई के रूप में भी हो सकता है।

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